कहानी-आखिरी फैसला (hindi kahani)

कहानी-आखिरी फैसला (hindi kahani)  

कहानी-आखिरी फैसला
चंँदू बाबू अपने घर से अचानक गायब हो गये थें l नहीं चंँदू बाबू कोई बच्चे नहीं थें l चंँदू बाबू पूरे पैंसठ बसंत देख चुके थें l चंँदू बाबू ने सोचा था , कि उनके गायब हो जाने से घर के लोग चिंतित होंगे l उनको लेकर परेशान होंगे l खाना -पीना सब छोड़ देंगे l लेकिन ठीक इसके उलट ही हुआ था l किसी ने चंँदू बाबू की कोई खोज खबर नहीं ली थी l वो, घर में पड़े किसी अनावश्यक सामान की तरह खुद ही हट गये थें l
चंँदू बाबू अब उपयोगी नहीं रह गये थें l वो, बिजली विभाग से रिटायर हो गये थें l शायद, चंँदू बाबू को कभी ऐसा लगा था कि, अब इस घर में उनकी उपयोगिता नहीं बची है l इसलिये, वो घर छोड़कर कहीं चले गये थें l कुछ दिन कलावती देवी ( चंँदू बाबू की पत्नी) ने चँदू बाबू को खोजने की कोशिश भी की थी l लेकिन कुछ दिनों के बाद वो भी शांत पड गई थीं l और , फिर पूरा परिवार अपने आप में जैसे व्यस्त सा हो गया था l

चंँदू बाबू व्यवहार- कुशल व्यक्ति थें l उनकी दोस्ती सबसे थी l वो किसी के दुश्मन हो ही नहीं सकते थें l बिजली विभाग में जब काम करते थें l तब भी सबसे प्रेम- पूर्वक
व्यवहार करते थें l चाहे छोटा हो या बड़ा l चंँदूबाबू सबका सम्मान करते थें l हम रिश्तों को कभी - कभी जरूरत या मजबूरी से निभाते हैं l कभी -कभी किसी लालच से भी निभाते हैं l लेकिन, चंँदू बाबू ऐसे नहीं थें l उन्हें किसी भी
चीज का कोई लालच नहीं था l वो, अपने संबंधों में प्रेम ढूंँढते थें ! रिश्तों में कभी लालच या फायदा नही लाते थें l
वो ऐसे आदमी थें कि किसी अनजान से भी मिनटों में
दोस्ती गांँठ लें l लेकिन अपने फायदे के लिए नहीं l अगर , सामने वाले को उनसे लाभ हो तो हो l लेकिन, उनको सामने वाले से कोई लोभ या लालच नही था l

तो, कुछ ऐसे आदमी थें चंँदू बाबू l बस उन्हें आपसे प्रेम
चाहिए l उनके पास लालच टिक ही न पाता था l एक नंबर के स्वाभिमानी आदमी भी थें चंँदू बाबू l
आप, विश्वास नहीं करेंगे l बिजली विभाग में जब काम करते थें l तब भी उनके दामन पर एक भी दाग़ नहीं लगा था l वो ऊपर की कमाई को हराम समझते थें l
अलबत्ता, उन्हें किसी की मदद करना अच्छा लगता था l
अपने कलीग और मित्रों की हमेशा हाल - चाल पूछते थें l
उनके कितने ऐसे दोस्त थें l जिन्हें हम जानते तक न थें l
कभी- कभी हमें आश्चर्य होता था l कि पानवाले शंभू जी, चाय वाले तिवारी जी, राशन वाले झा जी, कपड़े वाले मिश्राजी की समस्याओं को वो कैसे जानतें हैं ? जिनसे
भी मिलते घंटों बतियाते l अपने सब काम- धाम को छोड़कर! सबके दुखड़े सुनते, अपनी राम कहानी लोगों को सुनाते l जिससे भी मिलते उसके ही होकर रह जाते l
कुल, मिलाकर ऐसा व्यक्ति तो शायद ही आपको इस कलयुग में मिले l

लेकिन, यही चंँदू बाबू जब अपने रिटायरमेंट के बाद अपने घर पहुंँचे थें l तो उन्हें अपना ही घर बेगाना सा लगा था l एक पल को उन्हें लगा था कि वो किसी और के घर में तो नहीं आ गए हैं l लेकिन ,जब अपनी पत्नी कलावती को देखते l अपने बच्चों को देखते l तब जाकर कहीं उनका भ्रम दूर होता l

चंँदू बाबू के चार लड़के थें l बड़े बेटे योगेश ने एक कोचिंग
इंस्टीट्यूट खोल रखा था l करीब दस - बारह घंटे कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाता था l आमदनी उसकी अच्छी - खासी थी l मंँझला लड़का प्रकाश ने एक कुरियर कंपनी का काम ले रखा था l और दिन भर वो अपनी दुकान पर काम करता रहता l देर रात गए कहीं घर लौटता l तीसरा लडका रूपेश था l उसने पुरानी गाड़ियों को खरीदने - बेचने का धंँधा कर रखा था l चौथा लडका जुगनू था l जिसने अपना प्रेस खोल रखा था l सब बाल - बच्चे वाले लोग थें l
खैर, चंँदू बाबू अपने घर से निकलकर अपने बिजली विभाग के दफ्तर के नीचे वाले मिश्राजी की दुकान पर
काम करने लगे थे l मिश्राजी का चंँदू बाबू से बडा़ ही आत्मीय संबंध था l मिश्राजी अपने भाई की तरह मानते
थे, चंदू बाबू को l वहीं चंँदू बाबू ने मिश्राजी का खाता- बही और रोकड़ का काम संभाल लिया था l
चंँदू बाबू रिटायरमेंट के बाद जब एक दिन घर पर ही थें l
तब, वे पत्नी कलावती देवी से बोले - " कलावती मेरा बहुत मन करता है, कि तुम मेरे पास बैठो l मुझसे पहले की तरह बातें करो l ऐसा क्या हो गया है कि तुम अब मेरे
पास पहले की तरह नहीं बैठती ? "

इस, पर कलावती देवी चंँदू बाबू को झिड़कते हुए बोलीं -" बुढ़ापे में तुम सठिया गए हो क्या योगेश के बाबूजी ?
इस उम्र में यदि मैं, तुम्हारे पास बैठने लगी, तो बेटे - बहू क्या सोचेंगे ? तुम अपने ऊपर नहीं तो कम- से- कम मेरे ऊपर तो तरस खाओ l "
उस दिन ये बात आयी - गयी हो गयी l लेकिन, एक दिन जब चंँदू बाबू अपने कमरे में बैठकर कोई अखबार पढ़ रहे
थें, तो कलावती देवी चंँदू बाबू से बोली - " घर के खर्चे बहुत बढ गये हैं l योगेश कह रहा था कि वो अब इस घर
के खर्चे अकेले नहीं चला सकता l बाबूजी को बोलो की
वो कोई काम- धाम करें l मुझे भी योगेश की कही बात ठीक ही लगती है l तुम क्यों नहीं कोई काम- धाम ढूंँढ़ते ? "

अपनी पत्नी कलावती देवी के मुंँह से ऐसी बात सुनकर
चंँदू बाबू को आघात सा लगा l वो , कलावती देवी से बोले -" योगेश घर चलाता है, तो क्या हुआ ? आज कुछ महीनों से , वो घर चलाने लगा है l इससे पहले जब तक मैं सर्विस में था l तब तक एक पैसे की भी तँगी मैंने तुम लोगों को नहीं होने दी l अभी चार महीने मेरी सेवानिवृत्ति को नहीं हुए l और तुमलोगों ने पैसे को लेकर रोना शुरू कर दिया l "उन्होंने योगेश को आवाज दी l जब योगेश सामने आया तो, वे योगेश से बोले - " बोलो, तुम अपनी अम्मा से क्या कह रहे थे ? क्या तुमसे अब, ये घर नहीं चल रहा है ? यही घर है, जिसे मैंने चालीस साल तक बिना किस से कुछ लिए- दिये ही चलाया था l "
तब, योगेश बाबूजी के बात को लगभग बीच में ही काटते
हुए बोला - " बाबूजी, तब की बात अलग थी. उस समय
इतनी मँहगाई नहीं थी l इसलिए, घर आसानी से चल जाता था l आज इतनी ज्यादा मँहगाई है , कि आप भी ये
घर नहीं चला सकते l मेरी तो बात ही छोड़िये l "

... चंँदू बाबू ने अपने परिवार और बाल- बच्चों के लिए बहुत कुछ किया था l अपनी चालीस साल की नौकरी में उन्होंने कभी सांँस, लेकर भी नहीं सुस्ताया l वे लगातार काम करते चले आ रहे थे l इधर, छोटे - मोटे खर्चों को लेकर भी उन्हें अब लड़कों पर निर्भर रहना पड़ रहा था l
इधर, कई दिनों से उनका जूता टूट गया था l इसको लेकर वो परेशान थे l एक दिन अपने मंँझले लड़के प्रकाश से बोले - " बेटा, प्रकाश मेरा जूता टूट गया है l सुबह -शाम मैं टहलने जाता हूँ l तो चलने में बडा़ कष्ट होता है l तुम बाजार से लौटना, तो एक जोडी़ जूते मेरे लिए लेते आना l "
लेकिन, मंँझले लड़के प्रकाश के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगा l वो, पहले की तरह अपने काम पर जाता l और अब वो रात को जानबूझकर देर से आता l फिर वो चंँदू बाबू से बचकर सुबह- सुबह जल्दी ही काम पर चला जाता l दरअसल, प्रकाश ऐसे समय में घर में घुसता जब चंँदू बाबू सो रहे होते या टी. वी. देख रहे होते l और सुबह जल्दी ही घर से निकल जाता l उनके देखने से ठीक पहले l प्रकाश चाहता था कि उसका चंँदू बाबू से कम से कम सामना हो l वो, चंँदू बाबू से बचता रहता था l एक दिन चंँदू बाबू कलावती देवी से बोले- " आजकल प्रकाश दिखाई नहीं देता है l कहाँ रहता है आजकल ? मैंने उसे अपने लिए एक जोडी़ जूता लाने के लिए कहा था l लेकिन वो तो दिखना ही बंँद हो गया है l "
कलावती देवी प्रत्युतर में बोली - " प्रकाश को इस महीने बहुत काम है l उसे अपने दोनों बच्चों की स्कूल की फीस भरनी है l इधर, उसकी बहू नीता भी पेट से है l उसे भी डाॅक्टर को दिखाना है l मुझे लगता है कि अब बच्चा होने ही वाला है l दिन भी तो पूरे हो गये हैं l " यह कहती हुई, वो दूध लाने के लिए चली गई l
इधर दो साल के बाद उम्र बढ़ने के कारण, अब चंँदू बाबू को थोड़ा- बहुत कम दिखाई पडने लगा था l चंँदू बाबू को अब अखबार या किताबें पढ़ने में बहुत दिक्कत
होती थी l बहुत दिनों से वो सोच रहे थें की एक चश्मा का जुगाड़ अगर हो जाता तो वो बड़े आराम से अखबार पढ़ पाते l इसी बात को वो कई दिनों से सोचते आ रहें थें l एक दिन उन्होंने अपने संँझले बेटे रुपेश से कहा -" बेटा, रूपेश मैं, सोच रहा था कि मुझे अब आंँखों से थोड़ा- बहुत कम दिखाई देने लगा है l अखबार पढ़ने में बहुत दिक्कत होती है lअगर , आंँख वाले डाॅक्टर को मैं अपनी आंँखें दिखा लेता तो बढ़िया रहता l किसी दिन तुम मुझे आंँख वाले डाॅक्टर को दिखा दो l "

लेकिन, रुपेश चंँदू बाबू की बात को बीच में ही काटते हुए बोला -" बाबूजी, फिलहाल मेरे पास एक भी रुपया नहीं है l. इधर, गाडियों की खरीद- बिक्री का धंँधा भी बहुत मंँदा चल रहा है l नहीं, तो मैं आपको डाॅक्टर के पास जरूर ले जाता l हांँ, इस महीने तो नहीं, लेकिन, अगले महीने मैं आपको जरूर आंँखों के डाॅक्टर के पास ले चलूंँगा l "
रुपेश, चंँदू बाबू को आश्वासन देते हुए बोला l इतना कहकर, वो अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करता हुआ कहीं बाहर चला गया l
चंँदू बाबू ने सोचा, कि चलो इस महीने ना सही अगले
महीने आँखों को डाॅक्टर से दिखला लिया जायेगा l लेकिन, वो अगला महीना कभी नहीं आया l और , रुपेश भी बाबूजी को टालता रहा l इस घटना को सालभर से ज्यादा हो गया l
" चंँदू बाबू , अरे चंँदू बाबू सुनते हैं l चाय पी लीजिए l कब से लाकर रखी हुई है l ठंँडी हो जाएगी l " गणेश, जो मिश्राजी के यहाँ पर काम करता था l उसने चंँदू बाबू को जैसे सोते से जगाया l

" आंँ - हांँ , अच्छा , क्या चाय ? हांँ अच्छा पीता हूँ l " चंँदू बाबू झेंपते हुए से बोले l

... नहीं, फिर चंँदू बाबू की आंँखों में नींद कहांँ आयी थी ? अब वो रात को भी बहुत कम ही सो पाते थें l अलस्सुबह , सैर के लिए निकल पडते थें l इधर, उन्होंने अपनी घड़ी बेच दी थी l और अपने लिए एक जोडी़ जूता और एक चश्मा भी खरीद लाये थे l "
वो, याद करते हैं l ये जो योगेश मेरा बड़ा लड़का है l ये पहले कितना विनम्र और शांत स्वभाव का था l एक बार
चंँदू बाबू ने किसी गलती पर योगेश को पीट दिया था l लेकिन योगेश ने चूंँ-चीं कुछ भी नहीं किया था l आज यही योगेश उनका सम्मान नहीं करता l खैर, वक्त- वक्त की बात है l ये जो दूसरा लड़का प्रकाश है l जो आज मेरी बात तक नहीं सुनता l ये जब स्कूल में पढ़ता था l तो मैंने अपने व्यक्तिगत खर्चों पर रोक लगाते हुए, महीने की पहली तारीख को ही पैसे मिलते ही इसके लिए दो जोडी़ जूते हर साल खरीदकर लाता था l लेकिन प्रकाश को ये बातें कहाँ याद हैं ? ये, जो तीसरा लडका रुपेश है l इसकी पैदाइश के समय चंँदू बाबू ने बडी़ हंगामेदार पार्टी दी थी l लोगों को आज भी याद है वो शानदार पार्टी!

लेकिन, कहाँ याद है, इनलोगों को उनकी की गई वो बातें l सब के सब एहसान फरामोश हैं! मैंने अपनी पूरी जिंदगी इन लोगों के लिए लगा दी l लेकिन ये लोग मेरे ना हो सके l उन्हें एकबारगी लगा कि वो एक असफल गृहस्थ हैं l जिनकी चालीस सालों की तपस्या का कोई फल न मिला हो l कलावती मेरी पत्नी है l लेकिन हमेशा अपने बच्चों की तरफदारी करती रहती है l एक नंबर की चापलूस है l भूलकर भी मेरी बातों का समर्थन नहीं करती है l आज से पहले तक तो लोग मेरे बारे में यही कहते थे l यार, चंँदू बाबू बडे़ नसीब वाले हैं l भगवान ने इनको चार- चार बेटे
दिए हैं l इनका बुढ़ापा बडे़ आराम से कटेगा l लेकिन लोगों की कही सारी बातें ठीक ही तो नहीं होती ना !

चंँदू बाबू ने घड़ी पर नजर डाली l तीन बज गये हैं l लेकिन, कलावती ने अभी तक मुझे खाना खाने के लिए नहीं बुलाया l कलावती भी कितनी लापरवाह हो गई है l जब मैं नौकरी में था l और, कभी - कभार तीज-त्योहार में घर आता था l तब यही कलावती मेरे आगे- पीछे डोलती रहती थी l क्यों...? क्योंकि तब, मैं पैसे कमाता था l सरकारी बाबू था l पचास हजार रुपये महीना !

आज मैं सेवानिवृत्त हो गया हूंँ lआज मैं पैसे नहीं कमाता l क्या, इसीलिये? यही कलावती थी, जब आज से चार साल पहले राम नवमी की छुट्टी पर जब मैं घर आया
था l वो मेरे लिए दही बडे़ l प्याज की पकौड़ी l घुघुनी और मेरे पसंद की वो तमाम चीजें मुझे बनाकर खिलाया करती थी l बच्चे मेरे आगे- पीछे डोलते रहते थे l

यही, योगेश था l जब उसे लैपटॉप खरीदना था l तो मुझे रोज फोन कर -करके याद दिलाता रहता था , कि बाबूजी
आप जब आइयेगा तो मेरे लिए एक लैपटॉप लेते आइएगा l मुझे पढ़ने में बहुत दिक्कत होती है l और चंँदू बाबू ने सचमुच ही बोनस मिलने पर योगेश के लिए एक
लैपटॉप खरीद दिया था l लेकिन, आज योगेश मुझसे सीधे मुंँह बात नहीं करता l चंँदू बाबू को लगा कि उनको
भूख कुछ ज्यादा ही लग गई है l उन्होंने कलावती देवी को
बैठक से ही आवाज़ लगाई - " अरे कलावती सुनती हो l "

कलावती देवी टी. वी.पर कोई प्रोग्राम देख रहीं थीं l प्रोग्राम को आधे में छोडना पडा़ l वो झुँझलाती हुई आयीं l और झुंँझलाकर चंँदू बाबू से बोलीं - " बोलिये, अब क्या हुआ ? "

चंँदू बाबू ने घड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा - " देख रही हो समय क्या हो गया है ? सवा तीन बज गए हैं l खाना कब मिलेगा ? "
कलावती देवी को जैसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी l वो, लगभग झेंपते हुए बोली- " चलिए, चलकर खाना खा लीजिए l "
चंँदू बाबू और कलावती देवी जब खाना ,खाने के लिए अंदर गए, तो वे अंदर का माहौल देखकर भौंचक्के रह गए l
बड़ा लड़का योगेश बोल रहा था - " अब, मुझसे इस घर का खर्चा नहीं चलता है l घर में चारों लोग कमा रहे हैं l लेकिन, घर के खर्चे में कोई योगदान नहीं दे रहा है l मैं ये घर नहीं चला सकता l "

मंँझला भाई प्रकाश योगेश की हांँ में हांँ मिलाते हुए बोला - " हांँ योगेश भईया आप ठीक बोल रहे है l इतनी
मंँहगाई में एक साथ रहना संभव भी नहीं है l हम अपने बाल - बच्चों को पालें या औरों के बाल - बच्चों को पालें
l "
तीसरा भाई रूपेश भी कहांँ चुप रहने वालों में से था l वो भी बीच में कूद गया - " कौन किसके बाल - बच्चों को पालता है l यहाँ सभी लोग कमा रहे हैं l और अपने अपने बाल- बच्चों को पाल रहें है l किसी ने किसी का ठेका नहीं ले रखा है l और किसी को किसी पर एहसान करने
की भी जरूरत नही है l जिसको जैसे रहना है, वो रहे l मेरी बला से! मुझे क्या जाता है ? " वो लगभग उपेक्षा के भाव से बोल रहा था l जैसे, उसे इस परिवार से कोई मतलब ही ना हो l
चंँदू बाबू का सबसे छोटा बेटा जुगनू था l जो कामचोर भी था l उसकी बीबी रजनी उसे भाई- भाभियों के खिलाफ अक्सर भड़काती रहती थी l सबसे छोटा होने के कारण जुगनू को भी बडे़ - भाईयों और भाभियों का कहना मानना पड़ता था l वो, मन ही मन खुश हो गया l उसने सोचा चलो l मेरी बीबी भी इन भाई और भाभियों के काम
को कर - करके थक गई है l यही मौका है, जब हमलोग अलग हो जाएँ l प्रस्ताव रखने में क्या जाता है ? चलो, प्रकाश भैया की राय का अनुमोदन कर दिया जाए l ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ? हांँ, बाबूजी से थोड़ी - बहुत डांँट पडेगी l एक बार वो डांँट - डपटकर चुप हो जाएंँगे l फिर, तो हमेशा के लिए मजे ही मजे हैं l यही, सोचकर वो योगेश और प्रकाश की हांँ में हांँ मिलाते हुए बोला -" हांँ, योगेश भैया ठीक ही तो कह रहे हैं l आखिर, वे बेचारे कब तक अकेले ही गृहस्थी को खीचेंगे ? "

लेकिन, चंँदू बाबू को अघात सा लगा l उन्हें लगा कि आज तक जब इस घर में दो चूल्हा नहीं जला, तो अब ऐसा क्यों
होगा ? अलग होने का मतलब था l दिलों में गांँठ पड़ना l भाईयों के बीच में मनमुटाव होना l कितने प्रेम से उन्होंने
इस घर को जोड़ा था l पिताजी और बडे़ भईया के मरने
के बाद से आज तक इस घर में दो चूल्हे कभी नहीं जले !
इसी कारण उन्होंने शादी ना करने का फैसला किया था l
तब, उनकी माँ, वागेश्वरी देवी जिंदा थी lजब चंँदू बाबू की उम्र बढने लगी l और चंँदू बाबू शादी की बात को लगातार टालते रहते थें l तो एक दिन वागेश्वरी देवी ने उनसे जोर देकर कहा था -" बेटा, शादी कर लो l आखिर कब तक ऐसे ही रहोगे l तुम्हारे बाबूजी के मरने के बाद मैंने किसी तरह तुम्हें पाल - पोसकर बडा़ किया l मेरा कोई ठिकाना नहीं है l मेरी बात मान लो, और तुम शादी कर लो l "

तब, चंँदू बाबू ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा था -" मांँ, मैं शादी कर लूंँगा तो तुम्हें और भाभी को कौन देखेगा ? मेरी बीबी आएगी, तो रोज घर में किचकिच होगी l मैं नहीं चाहता कि मेरी शादी से इस घर में कलह उत्पन्न हो l "

लेकिन, मांँ ने चंँदूबाबू की बात नहीं मानी थी l और, आखिरकार , चंँदूबाबू को मांँ की बात मानकर शादी करनी ही पडी़ थी l

लेकिन, आज योगेश इतना बडा़ फैसला लेने जा रहा है l बगैर, मेरी अनुमति के! उन्होंने योगेश को समझाना चाहा l
चंँदू बाबू बोले - " आखिर, तुम लोग साथ में रहना क्यों नहीं चाहते? क्या दिक्कत हो रही है ,तुम लोगों को ? मैंने
इस घर को जोडे़ रखे रहने के लिए क्या कुछ नहीं किया ? और आज तुम लोग इतने बड़े हो गये हो कि घर से अलग होने की बात कर रहे हो ! "

लेकिन, बहुत समझाने के बाद भी चारों भाईयों ने चंँदू बाबू की बात को मानने से इंकार कर दिया था l इस घटना के बाद हमेशा हंँसते बोलते - रहने वाले चंँदू बाबू अचानक से चुप- चुप से रहने लगे थें l ज्यादातर अपने कमरे में ही रहते l किसी से कुछ बोलते भी नहीं l कलावती से भी बहुत कम ही बोलते l
वो, इतवार का दिन था l जिस दिन चंँदू बाबू ने ये फैसला
लिया था l आखिरी फैसला ! बहुत सोच समझकर l वो , सुबह की सैर से लौट आए थे l और अखबार खोलकर अभी पढ़ना शुरू ही किया था l कि, ये खबर कलावती देवी ने चंँदू बाबू को सुनाई - " आज से लड़कों ने एक नया नियम बनाया है, जानते हो क्या ? "

" क्या मतलब ? मैं, समझा नहीं l चंँदू बाबू अखबार के पन्नें पर से अपना ध्यान हटाकर, कलावती देवी के चेहरा को बड़े गौर से निहारने लगे l उन्हें लगा की कलावती देवी का चेहरा ही आज का अखबार है l और उनकी महीन- महीन झुर्रियों के बीच बहुत सारी खबरें हैं l जिन्हें चंँदू बाबू पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं l "

कलावती देवी बिना भूमिका बांँधे ही सीधे - सीधे चंँदू बाबू से बोलीं - अब, लड़के आपका बोझ अकेले नहीं उठा सकते l उन लोगों ने मिलकर एक फैसला किया है l आज से आपको प्रत्येक सप्ताह, अलग - अलग लड़कों के यहाँ जाकर खाना, खाना होगा l हर, आठवें दिन दूसरे लड़के की बारी आएगी l "
चूंँकि, कलावती देवी अभी भी सक्रिय थी l हाथ पैर ठीक - ठाक काम करते थे l घर के ऊपर के सारे काम, दूघ लाना l भाजी - तरकारी काटना l कपड़े धोना l कपड़े प्रेस
करना l कपड़ों को सुखाना l सुखाकर, छत से नीचे लाना l
बहुओं की जी - हजूरी करना l सबकी हांँ में हांँ मिलाना l
कुल, मिलाकर कूटनीतिज्ञ होना l इतने सारे गुणों के कारण ही, बेटे अपनी माँ कलावती देवी को ढ़ो रहे थे l
नहीं तो उनको भी अलग - अलग सप्ताह में अलग - अलग लड़कों के यहाँ खाना, खाने जाना पड़ता l

जैसाकि, चंँदू बाबू के बारे में मैनें बताया था, की वो बड़े ही स्वाभिमानी आदमी थे l अपना, जमीर बेचकर वो, जिंदा रहने वाले लोगों में से नहीं थें l कैसे आज भी चमकते हैं वो चालीस साल ! उनकी चमचमाती हुई जवानी और पूरे, घर को अपने दम पर चलाने की जीवटता ! नहीं, बेकार ही खो दिए चँदू बाबू ने अपने चमचमाते हुए चालीस साल l अपनी चमचमाती हुई जवानी l अपने मजबूत होने का एहसास l क्या बुढापा
कमजोरी की निशानी है ? नहीं वो आज भी कमज़ोर नहीं है l वो अंदर से पहले जितने ही मजबूत हैं l जैसे आज से चालीस साल पहले थें l किसी की नहीं सुनने वालों में से थें चंँदू बाबू l उनके, आदेश को सभी लोग मानते थें l वो, किसी के गुलाम नहीं थें l सारी जवानी, उन्होंने अपने घर
पर राज किया था l लेकिन, आज उनका भ्रम टूट गया!
वो परिवार को एक करके नहीं रख सके l शायद, वो एक
असफल, गृहस्थ कहलाएंँगे l उन्हें लड़कों का ये आदेश बहुत ही बेकार लगा l धिक्कार है ऐसी जिंदगी पर ! क्या, वो सिर्फ खाने के लिए ही जिंदा है ?

बहुत, भारी मन से उन्होंने कलावती देवी से पूछा -" तुम क्या कहती हो ? तुम्हारी क्या राय है ? "
कलावती देवी बडे़ ही सपाट स्वर में बोलीं l जैसे चंँदू बाबू से उन्हें कोई मतलब ही ना हो - " मैं, क्या बोलूंँ, अब, जो
लड़कों का फैसला है सो है l "
फिर, एक, दिन अलस्सुबह चंँदू बाबू का कमरा खाली मिला था l वो कहीं चले गये थें l

सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी
C/O- श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर
मेघदूत मार्केट, फुसरो,
बोकारो झारखंड (829144)
मो- 9031991875


Comments

  1. bahut acchi kahani hain.main youtube par kahaniyon ki video banate hun apki kahani acche lage .agar aapkahin to main esko bhi youtube par suna sakti hun

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