दर्द-लघुकथा

लघुकथा
दर्द

दर्द-लघुकथा
उस्मान साहब कुर्सी पर बैठते हुए अचानक से फिर उसी
रौ में कराहे । । जैसे इन महीनों में‌ जब से सर्दियाँ शुरु हुई थीं । वे कराहा करते थे । दर्द की एक पतली महीन रेखा उनके चेहरे पर उभर आई थी । कमबख्त घुटनों ने परेशान कर रखा है । इन दिनों । सर्दियों में उनकी तकलीफ अक्सर बढ़ जाया करती है‌ ।
वे फिर से एक बार कराहे
_" ऊफ! या अल्लाह .."
और बैठक से निकलकर ओसारे में आ गए । जहाँ फलांग भर की दू‌री पर रूकैया साड़ी वा‌ले से साड़ी खरीद रही थी । उनको देखा तो ‌उनको नजरअंदाज करते हुए साड़ी वाले से ‌ बातों में उलझी रही ।
थोड़ा रुककर वो‌ रुकैया से बोले - " बहू , ‌ ‌‌मेरा ‌ नीकैप कब‌का खराब हो गया है । और , ठंड की वजह से जोड़ों मे कनकनाहट होती रहती है । अनवर से कहो ना एक जोड़ी नीकैप बाजार से ला दे । मैं तो अनवर‌ से कह -कहकर‌ थक गया । लेकिन‌ वो आज-कल करके टाल जाता है । "
रूकैया साड़ी को एक तरफ रखते हुए बोली - " यहाँ लोग अपने लिए कमाएँ या औरों के लिए । समझ नहीं आता । मर- मर के दिन रात काम करो । तब भी घर में बरकत नहीं होती । छोटी सी नौकरी में लोग क्या-क्या जुटायें ? एक तरफ ढकों तब दूसरी तरफ उघाड़ हो जाता ‌है । अभी पिछले साल ही तो उन्होंने आपको नीकैप खरीदकर दिया था । क्या इतनी जल्दी खराब हो गये । "
" अरे , पिछले साल कहाँ दो- तीन साल पहले अनवर ने नीकैप लाया था । एक नीकैप का रबर पूरी तरह खराब हो गया है । घुटनों से नीकैप नीचे गिर जाता है । और घुटनों में कनकनाहट बढने लगती है । " ग्रामो फोन की सई जैसे उस्मान साहब के गले में घरघराई ।
" दोनों पैर में दर्द है या एक ही पैर में । " रूकैया ने पाँच सौ के दो नोट साड़ी वाले की तरफ बढाते हुए पूछा ।
" कभी - कभी एक पैर में भी करता है । और‌ कभी- कभी दोनों पैरों में भी । " उस्मान साहब खुरदरी दीवार की तरफ ताकते हुए बोले‌ ।
" आप एक ही नीकैप को बदल- बदल कर क्यों नहीं पहनते ? जब , जिस पैर में दर्द ज्यादा हो उस पैर मेंं पहन‌ लिया कीजिए । इससे पैसा भी बचेगा और सामान‌ की यूटीलिटी भी बरकरार रहेगी ।
" रूकैया कमरे में जाते हुए बोली ।
उस्मान साहब के चेहरे पर उदासी और दु:ख के कोहरे और ज्यादा घने हो गए । जो आँखों के रास्ते धीरे- धीरे बहने लगे । वे अस्फुट स्वर में जैसे बोले - " दर्द को बदलकर भी भला कोई पहनता है क्या ? मेरा बस चलता तो उसे साबुत उखाड़कर ना फेंक देता ! 

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महेश कुमार केशरी
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