लघुकथा - चोट
बहुत देर बाद नीरव बाबू को होश आया था l शायद वो चूक गये थे l आस पास के सभी लोगभी जाने पहचाने थें l विवेक , मंटू , पुष्कर ,
उनके तीनों बेटे l और उनके जान पहचान और जाति सेना वाली संस्था से जुड़े उनके तमाम जाने- पहचाने चेहरे भी आसपास ही थें l रामानुज बाबू , शांतु कुमार ये जाति सेना के अजेय सिपाही थें l
धुंधलाती नजरें जब कुछ सीधी हुईं l तो सामने की बेड पर मतीन मिंयाँ को देखा l स्लाइन वाले ग्लूकोज की बूंदें जैसे मतीन मिंयाँ के वजूद में जिंदगी भर रही थीं l
नीरव बाबू की भृकुटि तन गई l तमतमाते हुए बोले - " ये मनहूस यहाँ क्या कर रहा है ? इसकी शक्ल देख लो तो दिनभर खाना नसीब नहीं होता है l विधर्मी कहीं का ! नीच ! "
" बाबा आप , आराम कीजिए l डाॅक्टर ने आपको ज्यादा बोलने के लिए मना किया है l " विवेक , उनका बड़ा बेटा उनको तकिये पर लिटाते हुए बोला l
" वैसे भी , आपकी जान मतीन चाचा के कारण ही बच पाई है l जब आपको गाड़ी ने चौराहे पर धक्का मारा था l तो यही मतीन चाचा आपको अपनी बेकरी वाले टेंपो पर लादकर अस्पताल लाये थे l और अस्पताल में आपकी ब्लड ग्रुप का खून भी नहीं था l तब मतीन चाचा ने ही आपको खून देकर आपकी जान बचाई थी l "
नीरव बाबू को जैसे सोते से किसी ने जगाया था l वो ताउम्र छोटे- बड़े , ऊँच - नीच , धर्म- मजहब की कुंठाओं के बीच जीते आ रहे थें l उन्हें आज एक अदना सा विधर्मी मतीन ने बचा लिया था l
हे भगवान ! ये कितना बड़ा पाप वो लगातार करते आ रहे थे l उन्हें उनकी आत्मा ने धिक्कारना शुरू कर दिया l झूठे आडंबरों - कुँठाओं में कितना लताड़ते रहे उस भले आदमी को l
पता नहीं उन्हें क्या सूझा l वो उठकर बिस्तर से नीचे उतरे और मतीन मिंया को अपनी बांहों में अंकवार लिया l कमजोरी की वजह से वो लडखडा़ये लेकिन तभी मतीन मियां ने उन्हें थाम लिया l
फिर , मतीन मियां बोले - " अमां यार बेहोश होकर गिर जाओगे l अभी तुम्हारे चलने के दिन नहींं हैं l "
नीरव बाबू अपने आपको संभालते हुए बोले -" बेहोश तो अबतक था l अब होश में आया हूँ l मतीन मिंयाँ l " और दोनों बूढ़े हो- हो कर हँसने लगे l
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