सलोनी के कुसुम"
इंसान बेइन्तहा मजबूर दिखा,
कुसुम सी बालिकाएं तीर्थ पर,
बेंच रही पूजा का सामान छोली में।
चेहरे पर मुस्कान बिखेरी ,
आशा की किरण भरी आंखो में,
ले लो बाबू,ले लो अम्मा !
खूब मिलेगा आशीर्वाद तुम्हें।
बेचैनी से व्याकुल होकर,
बस दस रूपये का है प्रसाद।
गंगा/यमुना/नर्मदा के तटों पर,
सजे कुसुम के साथ दिये लिए,
पीछे पीछे फिरते बच्चे ले लो न?
ले लेते तो चमकती आँखे ,
और चेहरे पर मुस्का दिखी।
पर बेबसी का आलम देखा,
उम्र दिखी स्कूल गमन की।
गरीबी की इन्तिहा कुछ ऐसी,
माँ बाप लाचार दिखे।।
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