प्रकृति के नियम
{ विधि का विधान , जैसी करनी वैसी भरनी }
प्रत्येक क्रिया की ठीक उसी तरह की एक वितरित प्रतिक्रिया होती है
भीख मांगो , चोरी करो या उधार लो , घूस दो या ठगों , किसी भी तरह धन प्राप्त करो और मौज करो ! अथवा कम से कम ज़िन्दा रहो |
किसी भी कीमत पर आगे बढ़ने की अंन्धी दौड़ ; क्या हमने कभी बैठकर यह सोचने का प्रयास किया है कि हम अपने कमौं के लिए उत्तरदायी ठहराये जाएंगे ? शास्त्रों में जिन नारकीय यातनाओं का वर्णन किया गया है, क्या वे वस्तुत: सत्य है?
' प्रकृति के नियम ' में आशीष समझाते हैं कि `कर्म' क्या है पाप क्या है और किस कर्म के लिए हमें दण्ड मिलता है | निष्कर्ष अपरिहार्य है : अधिकतर लोग बहुत ही दु:खद भविष्य की तैयारी में है क्या ?
यह कोई परिहास नहीं है! आप इस बात पर अवश्य गोर करें और समझें कि अपने जीवन को साफ़-सुथरा बनाने के लिए आपको क्या करना चाहिए! कहीं देर न हो जाए |
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