लघुकथा - हैसियत और इज्जत
सभी लोगों ने एकमत होकर स्वर से स्वर मिलाया, हाँ लग तो ऐसा ही रहा है।
अचानक पुदन(मंगरू का लड़का ) भागता हुआ आया और चिल्लाया – अरे फुन्नन फुफ्फा आए हैं।
इतना सुनते ही टेलही प्रसाद ने कहा – अकेले आए हैं की औरु केहू है साथ में, पुदन ने जवाब दिया – ‘अरे उनके बगलिया वाले बाईस्कोप फुफ्फा हैं जौन बाईस्कोपवा देखावत रहे पहिले ‘ उ भी आएं हैं ।
मंगरू ने कहा – ले इहे डाल दिए गफलत में फुन्नन बाबू , का दिया जाए पानी पिए के और कैसे स्वागत सत्कार किया जाए । अरे कौन जरूरत रहा बास्कोपवा के साथ आवे के।
का कहें? फुन्नन बाबू ठहरे ऊँची हैसियत वाले अरे भई अच्छी नौकरी है,कार है, खेती बाड़ी है, पैसे वाले हैं और ले के चले आए साथे बाईस्कोपवा को,
तनिक भी अपनी हैसियत का खयाल नहीं रखते
कैसे का करें बड़ी दुविधा है।
टेलही प्रसाद ने कहा – कउन दुबिधा है?
मंगरू -अरे!हैसियत के हिसाब से न इज्जत देना है,आवभगत करना है,खिलाना पिलाना है।
नयका चद्दर बिछाएंगे! उसी पर बाइस्कोपवा भी बैठेगा उहो खूब जगह लेकर अच्छा नहीं लगेगा हमको जान लो।
पानी पीने को बादाम देंगे कई ठो गटक जाएगा।
बड़ी आफत है क्या करें?
टेलही प्रसाद ने कहा – अरे भई! फुन्नन बाबू को नयका चद्दर पे बिठाओ और बाइस्कोपवा को खटिया पे बिठाओ, और एक बात ध्यान देना ज़ब फुन्नन बाबू अपने हिसाब से बादाम खाई लें तब एक दो बादाम बाइस्कोपवा को भी दे देना ई नहीं कि चार पान ठो खा जाए।
बाईस्कोपवा का भी हैसियत होता तो उसको भी ज्यादा इज्जत दिया जाता, पर उ तो ठहरा निठल्ला कैसे इज्जत दें आवभगत करें बताओ भला। ई फुन्नन बाबू भी न……… का बताएँ।
फिर क्या था! पूरे परिवार ने फुन्नन बाबू का खूब सत्कार किया और बाईस्कोप के साथ आवभगत के नाम पर बस खानापूर्ति।
बाईस्कोप सब देख रहा था और मन ही मन कह रहा था “जिसकी जितनी हैसियत उसको उतनी इज्जत “।
काश मेरी भी हैसियत होती तो मुझे भी ऐसे ही इज्जत मिलती।
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