सम्मान का पैगाम
"अम्मी, डाकिया आया हैं ख़त लेकर।"
"किसका ख़त है, अजहर?"
"अभी मैं लेट हो रहा हूं अम्मी, शाम को आकार पढ़ता हूं। अभी मुझे अस्पताल जाना हैं आसिफ के खाला को भर्ती कराने और उसके बाद आजकल जो मारवाड़ी कॉलेज की जमीन पर कब्जा हो रहा है सरकारी महकमों के मिलीभगत से उसके खिलाफ शहर के लोगों के साथ डीएम साहब से मिलने जाना हैं। अभी मैं चलता हूं, अम्मी। आज मैं लंच बाहर कर लूंगा और आप भी समय से लंच कर लेना।"
"ठीक हैं बेटा, पर समाजसेवा के साथ खुद का भी ख्याल रखा कर । ना जाने तूने कितने दुश्मन पाल रखे हैं इस समाजसेवा से ..........!" - इशरत ने बड़बड़ाते हुए कहा।
"अम्मी, तुम बेकार की चिंता करती हो, रब पर भरोसा रखो सब अच्छा करेंगे और अभी के लिए अम्मी मैं चलता हूं।"
शाम को घर आते ही अजहर ने इशरत से कहा- "अम्मी, आज बहुत थक गया हूँ, जल्दी से डिनर लगा दो बहुत भूख लगी हैं।"
"अज्जू, पहले सुबह की आई ख़त तो पढ़ के सुना किसका ख़त है ? तेरे अब्बू के इंतकाल के बाद अपने गिने-चुने ही नाते-रिश्तेदार है जो खैर लेते हैं अपनी। तुम ख़त पढ़ लो तब तक मैं डिनर लगाती हूं ।"
"जी अम्मी,।"
थोड़ी देर बाद इशरत जी ने आवाज दी "अजहर ... अजहर ... आ जा बेटा खाना लगा दी हूं।"
काफी आवाज देने पर उधर से कोई आवाज ना आने पर इशरत घबराकर अजहर के कमरे में जाती है और वहां ख़त के साथ उसे उदास बैठा देख पूछती है - "क्या हुआ, अजहर? सब खैर तो हैं ....... किसका ख़त है... कोई ऐसी - वैसी खबर तो नहीं ?"
"अम्मी, ये सरकारी ख़त हैं जिसमें अगले दस तारीख को मुझें दिल्ली बुलाया है। मेरी निष्पक्ष पत्रकारिता और समाजसेवा के कारण सरकार मुझे सम्मानित करेगी।" -अजहर ने अपने अम्मी को बीच में रोकते हुए अपनी बात बताई।
"ये तो अल्लाह की मेहरबानी हैं। अल्लाह तुम्हें ऐसे ही बरकत दें ... ये तो बड़ी खुशी की बात है। रूको किचेन से मिठाई लाकर तुम्हारा मुंह मीठा कराती हूं....!"
"अम्मी, ये खुशी की बात हैं तो है परररर......!"
"पर क्या, अजहर ? .... अपने निष्पक्ष पत्रकारिता और समाजसेवा को सम्मानित होते देख तुम्हें ख़ुशी नहीं ? जो ख़त पढ़कर इतने उदास हो गए?"- इशरत ने अजहर के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"अम्मी, भले ही ये ख़त औरों के नजरों में सम्मान का पैगाम हो परंतु मेरे नजरों में मेरे घाव पर लगाएं जाने वाला मलहम है। वह घाव जो मेरे बेबाक और निष्पक्ष पत्रकारिता के बदले मुझे मिले। इसी पत्रकारिता और समाजसेवा के कारण तीस साल की उम्र में मेरे ऊपर दर्जनों मुकदमें लादें गए। माफिया और भष्ट्र-अधिकारियों के विरोध पर मुझे गुंडा-माफिया कहा गया। अम्मी, कैसे भूल सकता हूं कि इन्ही वजह से फरहीन के घरवालों ने मेरे और फरहीन के निकाह को मना कर दिया....। और तो और इन्हीं आरोपों के कारण मेरे सही होने पर भी अब्बू मुझे रोकते - टोकते रहते थे मेरे ना सुनने पर अब्बू ने आखिरी कुछ सालों में मुझसे सीधी मुंह बात करना भी बंद कर दिया था। इसलिए नहीं की मैं गलत था बल्कि शायद इसलिए कि उन्हें डर था कि कहीं इन आरोपों के कारण वो अपने वारिश को न खो दें। इन्हीं सब की चिंता में अब्बू को हृदय की बिमारी लग गई और इसी बीमारी के वजह से आज अब्बू......!"
"अब उन पुरानी बातों का क्या मलाल अजहर ?" - इशरत ने बेटे को अपनी ममतायी आंचल में छुपाते हुए कहा।
"अम्मी, मुझे इसका मलाल नहीं है कि निष्पक्ष पत्रकारिता और समाजसेवा के बदले मुझे अपराधी, माफिया इत्यादि कहा गया बल्कि मलाल इस बात का है कि मेरे इस सफलता के मुकाम को देखने के लिए अब्बू नहीं रहें हमारे बीच। जिन्हें मेरी पत्रकारिता और समाजसेवा के वजह से मुझसे ज्यादा प्रताड़ना झेलना पड़ा। अम्मी, जिसके कारण मैने अब्बू और फरहीन को खोया, आज उसके कारण मिलने वाला ये सम्मान मेरे लिए अब कोई मायने नहीं रखता।" - इतना कहते ही अजहर ने डाक से आएं सरकारी सम्मान के पैगाम के कई टुकड़े कर जमीन पर बिखेर दिया और अपनी अम्मी के गोंद में अपना सिर रख खुद को नीद में समेट लिया।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com