व्यंग- एक ओर स्वप्न
नींद ही नहीं आ रही थी तो मोबाइल में इधर उधर कुछ न कुछ ढूंढ के सुन रही थी।और देखा तो कैप्टन अमिरवीरसिंह का साक्षात्कार आ रहा था,सुन ने लगी और सुनते सुनते नींद आ गई ,बहुत गहरी नींद,इतनी गहरी कि स्वप्न की दुनियां में विहरने लगी।मैं भी टीवी एंकर बन साक्षात्कार लेने लगी किंतु किसका, अमिरवीरसिंग का नहीं फेरी का,समझें नहीं, नयनजितसींग खिद का।सजे हुए मंच सा सुंदर टीवी स्टूडियो में मेकअप परतों में छुपा चेहरा लिए वेस्टर्न कपड़ों में अदा के साथ बैठी थी में और सामने थे वाकपटु खिद साब, अपनी मूछों को संवारतें अपने बालों को सिर पर सेट करतें ,वही अपनी धारदार मुस्कुराहट लिए मेरे प्रश्न पूछने से पहले ही जवाब देने को आतुर, विहवल सा चेहरा देखकर मैं भी मुस्करा उठी।
मैं: खीदजी आपका हमारी चैनल पर स्वागत हैं। जय हिंद।
खीद जी: जयहिंद जी,आपको भी और दर्शकों को भी,जय हिंद।
मैं: खीदजी आप ने वो हंसी वाला शो में कमाल कर दिया था, सब बहुत पसंद करते थे आपने छोड़ क्यों दिया?
खीद जी:नहीं जी छोड़ा नहीं हैं, बस अबला को एक मौका देना तो बनता ही हैं न? She is very sweet boss।
मैं: नयनजी आप...
खीद जी: रुको रुको नयनजितसिंह बोलिए वरना जवाब देने मेरी पत्नी भी आ जायेगी... वो ...वह भी नयन ही हैं न?
मैं:: ओह माफ कीजियेगा खीदजी।
खीद जी: कोई बात नहीं बॉस,ठीक हैं।
मैं: पीजेबी की पार्टी क्यों छोड़ दी आपने?
खीद जी: क्या बताएं,मेरे राज्य में दो ही कुनबे हैं जो राज्य को चला रहे हैं।
मैं: खीद जी कुछ और कुनबे भी देश और पार्टी दोनों चलाते रहे हैं।
खिदजी: वो तो छोड़ो मेरे राज्य की ही बात करने के लिए बुलाया हैं तो उसी पर ही बात करते हैं।
मैं: ठीक हैं जी। उसमे क्या कमियां हैं।
सिद्धू: मेरे राज्य की दौलत बिचौलिए खा रहे हैं। एक नदी वाले राज्य कमा रहे हैं और मेरा राज्य इतनी नदियां होने के बावजूद भी ३०० करोड़ के कर्जे तले हैं जी।
मैं: और आप तो बॉस जी के बारे में कसीदे पढ़ते थे।
खिद्जी:जी बॉस तो बॉस ही हैं
वो दरिया ही नहीं जिसमे नहीं रवानी
जब जोश ही नहीं कहां की हैं जवानी।
जहां हर सर जूक जाएं वहीं मंदिर हैं
जहां हर नदी समा जाय वही समंदर हैं
जीवन की इस जंग में युद्ध बहुत होते हैं
सिकंदर होने से ही जंग जीती जाती हैं
मैं:अभी भी बॉस को मानते हो?
खिदजी: जी उनको तो छोड़ ही नहीं सकते ,वो तो दिल में रहते हैं।
मैं: ओह तो वो सब छोड़ने वोडने का सब नाटक?
खिदजी: नहीं जी छोड़ा तो नहीं हैं उन्हे,बस कुछ समय की बात हैं।
मैं: और वो क्या था? वही जो आप अमीरविरसिंह के पीछे हाथ धोके पड गए और उन्हें पदच्युत कर दिया था।
खिदजी: ओह ओह,वो तो बॉस के लिए ही पदस्थान बनाने का प्रयास था और उसे सफल बनाके रखूंगा।
मैं: वह कैसे?
खिदजी: अरे समझिए न,बॉस का साथ उनके साथी छोड़ गए तो कुछ जगह मेरे राज्य में भी तो उनके लिए करनी तो बनती हैं न!
मैं: वह तो ठीक हैं आपकी कृपा रहेगी उन पर,लेकिन आप बेगाने और तूफानी पड़ोसी लोगों को गले लगाते फिरते हो ,उसका मतलब क्या है?
खिदजी: कुछ तो करना पड़ता हैं लोगों को विश्वास दिलाने के लिए।चाहे बॉस के साथ ही काम करे किंतु दूरी दिखाने के लिए ये जरूरी हैं जी।
मैं:और अपने हरिफों से गद्दारी? ओह ...गद्दारी नहीं बेवफाई?
खिदजी:वो किनुजी की बात कर रहें हैं आप?
मैं: जी जी..
खिदजी: समजलें ये एक योजना हैं जो आगे जा के बॉस के फायदें में ही होगा।देखो जी अगर मैं उससे मिल के काम करता हूं तो वह तो मशहूर हो जायेगा और वैसे भी मुझे चुप रहना मुश्किल लगता हैं ।बस सब के नुक्स निकाल अपने नुकसों को छुपाना पड़ता हैं।
मैं:ठीक हैं जी,बस एक बात हैं आपके जो अभी अभी अपने बने हैं उनका क्या भला कर रहे हैं आप?पुराने आपके साथ तो मेरा नाता था ही नहीं वह सिर्फ दिखावा था अपनी कीमत बढाने के लिए।और ये जो दूसरे अपने हैं वे तो बस थोड़े से सीधे हैं,मेरी हर बात पर विश्वास दिला ही देता हूं और वे कर देते हैं।( आंख बिचकाके मुंह बनाया थोड़े अहंकार में) ये तो आप अमीरविरसिंह के मामले में देख ही चुके हैं।कैसे पलड़ा ही बदल दिया था।
मैं: कैसे कर लेते हैं ये आप?
खिदजी: बस अपनी जुबान का कमाल हैं ये सारा। उनलोगों ने तो अपने बुद्धिधन को छोड़ दिया हैं।
मैं: बुद्धिधन! ये क्या हैं?
खिदजी: आप समझे नहीं? बॉस की नकल कर के अपने बुजुर्गो को अनदेखा कर त्याग रखा हैं ,वो लोग,पतन की और जा रहे हैं।बस जल्द ही हो जायेगा खात्मा कभी भी उनका सब का,बुजुर्गों समेट सभी का। देखो जी बुजुर्गों के पास कोई चारा ही नहीं हैं,दूसरी पार्टी में जायेंगे तो उच्च पद नहीं मिल सकता और अपनी पार्टी में उनकी कोई पूछ ही नहीं रही हैं।
मैं: ये बताएं ,अगर उनको पता चला आपकी वस्तुस्थिति का तब क्या होगा?
खिदजी: ( हंस कर )नहीं जी इतने सयाने वो तो हैं ही नहीं।छोड़ो ये बात।
मैं:
मैं: वो तो ठीक हैं किंतु आप बॉस के लिए और क्या क्या कर रहें हैं और कैसे?
खिदजी:जरा देखे तो समज आएगा,उनका पहला तुरुप का इक्का तो मैंने हटा दिया,या कहें तो उनसे जुदा कर दिया जो का कभी भी मुडके आएगा ही नहीं।दुश्मन बना के रख दिया हैं।
अब उनका दुश्मन बॉस का दोस्त बन गया तो समझो बॉस खुश।
मैं: कब तक ये चलेगा ?
खिदूजी: जी देखें ये तो जब तक बॉस छा नहीं जाते तब तक यही चलता रहेगा।
मैं: ठीक हैं खिदजी आपकी साफगोई के लिए धन्यवाद ,आशा हैं आपकी और बॉस की दोस्ती सदा जमी रहें, वैसे भी आप ने अपने १३ साल की राजनैतिक सफलता का सारा श्रेय बॉस को ही देते रहें हैं।उन्हे सिकंदर,समंदर और न जाने क्या क्या उपमाएं देते रहें हैं।
खिदजी: धन्यवाद जी ,आनंद आ गया आपसे बात करके। बहुत दिनों से बॉस के बारे में बात किए को।
जैसे खिद्दूजी उठे मैं भी उठी किंतु कुर्सी से नहीं अपने पलंग से,और एकदम ही ज्ञात हुआ कि ये तो स्वप्न था।
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