उलझे-बिखरे सब"
कितने उलझे-उलझे हुए सब ,
कितने बिखरे-बिखरे हुए सब।
बनावटी दुनिया में उलझे हुए सब,
दिखावटी सब सज-धज ओढ़ी है।
अंदर से खाली-खाली सब दिखते ,
खोखलेपन में टूट रहे सब भीतर ।
टूट रहे अंदर-अंदर,बाहर चमक-
निराली सी,अजब तेरी कहानी बंदे।
सांसे भी गिनती की दे भेजी रब ने,
उलझनों में उलझ बर्बाद करी सब ।
बची-खुची समेट अंतस की शांति में ,
सुलझी सी जिन्दगी चुन अब जी ले ।
भटकाव बहुत आयेंगे जीवन में,
चमक धमक चौंकाने वाली ।
छुपकर आँसू व्यर्थ बहा मत ,
खुद में खुद की खोज करें सब ।
चिंता तनावमुक्ति सर्वोपरि जीवन में,
सरल-सहज हो अंतस-बाहर ।।
क्या थे?क्या है? क्या हो रहे सब?
पल-भर ठहर :विचार करें सब ।।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com