स्वयं प्रेम कविता -डॉ. माध्वी बोरसे!

स्वयं प्रेम!

स्वयं प्रेम कविता -डॉ. माध्वी बोरसे!
स्वयं प्रेम की परिभाषा,
बस खुद से करें हम आशा,
स्वयं का रखें पूरा ख्याल,
खुद से पूछे खुद का हाल!

स्वयं से प्रेम है ईश्वर की भक्ति,
देती है यह हमारी आत्मा को शक्ति,
जिंदगी को गुजारे, खुश रहकर,
स्वयं को बनाएं, हर दिन बेहतर!

स्वयं पर करें पूरा विश्वास,
प्रेम से भरी हो, हर एक सांस,
प्रेम, प्रसन्नता हो हमारा व्यवहार,
करें खुद को पूरी तरह से स्वीकार!

स्वयं से प्यार और विश्वास कभी न खोए,
हंसते रहे हमेशा कभी ना रोए,
दूसरों से वही व्यक्ति, प्रेम कर सकता है,
जिसके स्वभाव में, स्वयं के लिए भी प्रेम झलकता है!

निकाल देते हैं, अपने अंदर से अहंकार और अभिमान,
हमारे जीवन में हो, प्रेम और सम्मान,
कोई करे ना करे, पर खुद से मोहब्बत करते रहेंगे,
प्रेमानुभूति से हमारा जीवन भर देंगे!
कोई करे ना करे, पर खुद से मोहब्बत करते रहेंगे,
प्रेमानुभूति से हमारा जीवन भर देंगे!

डॉ. माध्वी बोरसे!
स्वरचित व मौलिक रचना
राजस्थान (रावतभाटा)!

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