साहिल
ओ मेरे मन के मीत
दिल लिया क्यों जीतनिश्छल है मेरी प्रीत रे
जीवन की है ये रीत
सदा से चली आई रे
तू कैसा है नाविक
जीवन है मझधार रे
बस एक ही पतवार
बन कर तू साहिल
क्या समझा न काबिल
मेरी जीवन की नैया को
गैरों के हाथों ही थमा दी
मायावी जिन्दगी तूने दी
मेरी आरजू हो प्रिय तुम
मेरी आबरू तुझसे ही है
बेदर्द सनम तूने -तूने रे
कठपूतली बना-2 डाला
मायावी संसार में ढकेला
हाले दिल सुनाऊं कैसे रे
तू किनारे -किनारे कर बैठे
मैं किरण बन-बनकर ढूँढू
तू बादल बन-बनकर छुपते
सूरत के झरोखे में दिलवर
दिदार मन मंदिर में करती रे
ह्रदय के आंगन में बसेरा है
मिलन की सुबह तो आएगी
साईं तू है बस साहिल मेरा रे।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com