रिश्तों की कद्र- अनीता शर्मा

 एक चिन्तन!!
   * रिश्तों की कद्र*

रिश्तों की कद्र- अनीता शर्मा

मैंने पिछले दिनों फेसबुक पर एक फोटो देखी जिसमें पिछले साल किसी कार्यक्रम में माता पिता और अपने परिवार के साथ फोटो खींची गयी थी।मैं बहुत नजदीक से जानती हूँ , हमेशा अलग-अलग रहे आना-जाना,बातचीत भी बंद थी।पर हाँ बिछड़ने के पहले मेल मिलाप हो गया था।ईश्वर की कृपा ही है संतुष्टि से विदा हुए।

उन दोनो दम्पति की महज हफ्ते भर में मृत्यु हो गयी।पर एक बात अच्छी थी कि सभी बच्चे साथ थे।

     मन बहुत बेचैन हो जाता है ऐसे रिश्तों को देखकर।क्यों नहीं रिश्तों की कद्र होती जब वे जीवित रहते हैं।

    मनुष्य मन कमजोर पड़ जाता है।खो देने के बाद रोता है,याद करता है,पछताता भी है।पर ......समय निकल जाने के बाद।

      समय के साथ सीखता क्यों नहीं?शायद पिछले जन्म के कर्म ही ऐसे रहे होगे जो दूरी आई।

    पता नहीं नियति ने क्या संजोए रखा।

-----अनिता शर्मा झाँसी
-----मौलिक रचना

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