देश का दुर्भाग्य
कृषि के लिए नीतियां बनाने मेंकृषक का प्रतिनिधित्व नहीं,
शिक्षा के लिए नीतियां बनाने में
शिक्षक का प्रतिनिधित्व नहीं,
सेना के लिए नीतियां बनाने में
सैनिक का प्रतिनिधित्व नहीं,
उद्योगों के लिए नीतियां बनाने में
कामगार का प्रतिनिधित्व नहीं,
प्रतिनिधित्व अगर है भी कहीं
तो सिर्फ चाटूकारों का
प्रतिभावान की कोई कद्र नहीं,
नीतियों को लिखित रूप देने वालों को
धरातल पर समस्याओं की जानकारी नहीं,
नीतियों को वैधानिक रूप देने वालों को
वोट बैंक के अलावा और कुछ पड़ी नहीं,
इसलिए इन नीतियों की सफलता का प्रतिशत
उम्मीदों के मुताबिक तो बिल्कुल नहीं।
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