बीती रात हो गई भोर
अंतर्मन की पूर्ण कामना,
बिना तुम्हारे सभी अधूरे,एहसास हमारा अपना है,
एकाकीपन जीवन अपना।।
सानिध्य तुम्हारा छूट गया,
उद्देश हमारा छिन्न हुआ ,
पावन संकल्प हमारा जो ,
नियति के हाथों टूट गया ।।
बची हुई वेदना हमारी ,
दी हुई तुम्हारी दौलत है ,
स्पर्श तुम्हारा मीठा मीठा,
ले अतीत आ जाता है ।।
वर्तमान हमारी दूरी बन गई,
स्मृति तुम्हारी अपनी मेरी ,
भविष्य की चिंता मुझे नहीं,
चिंतन में तन मन ले बैठा ।।
ले कलश तुम्हारा दीप जला,
अंतर्मन मेरा हुआ उज्जवल ,
कलश कलश पर दीप दिखे,
प्रकाश भरा प्रतिबिंब मिला ।।
आत्म विभोर तुझको पाकर ,
मिला स्पर्श भरा दर्शन तेरा ,
दीपशिखा अंतर उर जागा ,
भरा प्रकाश अंतर स्थल में।।
वर्तमान है मेरा स्पर्श भरा ,
लगता कितना सुंदर सुंदर ,
अनुभव का एहसास लिए ,
खोया मेरा है शेष अतीत ।।
चल इस पर चिंतन भी करना,
प्रतिकूल हमारा अनुकूल बना ,
जीवन दर्शन की बात बड़ी है,
शून्य भरा एहसास हुआ है ।।
वही धरती ऋषि आश्रम ,
समय कितना सुहाना था,
मिले थे हम जहां दोनों ,
धरा पावन बहुत प्यारी ।।
वही दरिया सुगम धारा,
मचलती थी लहर ले ले,
कल बैठे थे किनारे पर ,
अब किनारा दूर हमसे है।।
कलम गीत गाती है तेरी ,
तुम मेरे संग गाती आई ,
मैं अभाव में भावविभोर
बीती रात हुई जब भोर ।।
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