आंसू छलके- डॉ हरे कृष्ण मिश्र
आंसू छलके
आंसू भरकर स्वागत करना,
बहुत पुरानी परंपरा अपनी,इंतजार लंबी जब होती है ,
मन के आंसू छलक आते हैं,।।
गले लिपटते, आंसू बहते,
कुशल छेम आसूं में पूछते,
याद हमारी क्यों नहीं आई,
बीते कैसे समय तुम्हारे ??
प्रेम में पीड़ा ही होती है,
खुशी के आंसू आ जाते हैं,
बहती नदियां दूर किनारा,
अपना सा कोई दिखता है ।।
वेखुदी में मिला न कोई,
सूना सूना सा लगता है,
है तुम्हीं से प्यार इतना,
मन हमारा जानता है ,।।
आज किनारे सागर तट पर
लहरों को गिनता आया हूं ,
इन आते जाते हर लहरों में ,
साया तेरी मिल जाती है ।।
दमन की धरा धरती पर,
इकला इकला आया हूं,
मैं बच्चों बीच आया हूं
बिना तेरे अधूरा सब ।
जनम जनम के रिश्ते मेरे,
कैसे बिखर गए हैं सपने,
खोया जीवन के हर क्षण ,
पास नहीं तुझको पाकर ।।
स्मृतियां टूटती गई हमारी,
क्या खोया है ध्यान नहीं,
जो भी पाया मैंने तुमसे
बची स्मृतियां शेष कहा ?
जिंदगी पर भरोसा था,
भरोसे पर कमी आई,
तुम्हारी कमी यहीं आई,
बता किसको क्या बोलूं ।
कैसी हमारी बेचैनी ,
कितना दूर जीवन है ,
बचा है पास क्या मेरे,
लक्ष्य दिखता है नहीं ।।
चलना अकेला है कठिन,
गंतव्य मेरा गौण है,
कैसी विवशता आज है,
उलझ गई है जिंदगी ।।
मौलिक रचना