राष्ट्रीय शिक्षा षड्यंत्र का शिकार
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा निम्न वर्ग के लिए अत्यंत महंगी होती जा रही है। भारत में समाज का एक तबका उच्च तकनीकी शिक्षा से कोसों दूर खड़ा हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 21 ए में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त है परंतु निम्न वर्ग के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना राष्ट्र के समक्ष एक गंभीर चुनौती है। शिक्षा का औद्योगिक करण समाज को बढ़ने पनपने में विकट समस्या खड़ी कर दे रही है। नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र दक्षिण भारतीय राज्यों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है। दक्षिण भारतीय राज्यों का सदैव यह आरोप रहता है की सरकार ने त्रिभाषा सूत्र के माध्यम से शिक्षा का संस्कृतिकरण कर दिया है। नवोदित शिक्षा की उन्नति यथेष्ट अवसर प्रदान करने के बजाय निम्न वर्ग का उच्च शिक्षा प्राप्त करने का दायरा सिमटता जा रहा है। स्वतंत्र भारत में आज अंग्रेजों की समय की "अधोमुखी निस्यंदन" का सिद्धांत परिलक्षित हो रहा है की शिक्षा उच्च वर्ग से छनकर निम्न वर्ग की ओर जाए। जहां तक मेरा मानना है राष्ट्र को शिक्षा के उदारवादी परंपरा की बौद्धिक क्रांति की नीति को अपनाना चाहिए ताकि निम्न वर्ग को उच्च शिक्षा प्रदान करना राष्ट्र का प्रमुख ध्येय होना चाहिए। यह तो सच है कि निम्न वर्ग की शिक्षा का चिंतन इतिहास के जिस दौर में प्रस्तुत किया गया उस समय वह उभरते हुए पूंजीवाद का शिकार हो गया परंतु आज के युग में निम्न वर्ग की शिक्षा संवैधानिक अधिकारों के अंतर्गत निहित है। राष्ट्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति उस राज्य मर्मज्ञ कलाकार के समान होनी चाहिए जिसमें शिक्षार्थी अपनी सृजनात्मक प्रतिभा का प्रयोग राष्ट्र के विकास के लिए कर सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बौद्धिक क्रांति अभिजाततंत्रीय सहयोग से ही संभव है। जिससे समाज का हर वर्ग ज्ञान के सद्गुण की सीढ़ी चढ़े।
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