लो फिर से लिख देती हूँ !!
लो फिर से लिख देती हूँ ,
अपनीं प्रेम कहानी ।
बरस रहे हैं सजल नेत्र ये,
ज्यों सावन का पानी ।।
यह जो प्रेम की मधुरिम पीड़ा,
टीस बनी है चुभती ।
कैसे समझाऊँ मैं तुमको ,
भाग मर्म के बुनती ।।
सारे लहज़े वही पुराने ,
मुझे आज भी भाते ।
चंदा की हो चटख चाँदनी,
या मधुकर के गानें ।।
बीते पल समेट कर लाऊँ,
यह कैसे है सम्भव ।
मौन हो गए सारे किस्से ,
बासी पन्नों के तह में ।।
उन बासी पन्नों के तह में,
सूखा एक गुलाब ।
ऐसे दिखा मुझे वह जैसे,
खोया मीत मिला ।।
आह ! वेदना पराकाष्ठा,
किसको आज सुनाऊँ ।
एक हाथ से अश्रु सुखाकर,
फिर से पुष्प छिपाऊँ ।।
तुम्हें छुपाया है पन्नों में ,
तुम भी राग छुपा लो ।
और कहीं तन्हा में जाकर,
दिल से "विजय" लगा लो।।
लो सम्भाल लो मीठी बातें,
कटुक निबौरी दे दो ।
मरहम सी कड़वाहट जिसकी,
शायद जीवन दे दे ।।
इस जीवन के तह खानें से,
कितनें तानें लिक्खे ।
कम पड़ जाये कागद स्याही,
खुल जाएँ जो फिर से ।।
लो फिर से लिख देती हूँ,
अपनीं प्रेम कहानी ।
बरस रहें हैं सजल नेत्र ये,
ज्यों सावन का पानी ।।
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