chav laghukatha by jayshree birmi

चाव

chav laghukatha by jayshree birmi

जब जमना नई नई शादी कर अपने ससुराल आई थी।सब नया सा था,घर,घर के सदस्य,आसपड़ोस सब कुछ नया फिर भी एक उत्साह से जीवन भर गया था।एहसास था सब को अपना बनाने का, खास कर घर और घर के सदस्यों को,उनका प्यार पाने का भी सपना तो था।सुबह उठ रसोई घर में सासुमा के साथ तो कभी मंदिर में बड़ी सास के साथ वह फुदकती फिरती रहती थी।और कुछ दिनों में सब का प्यार ,भरपूर प्यार पाने लगी थी।सबसे ज्यादा तो दादी सास का प्यार पाना उसके लिए मायने रखता था।जैसे ही उसकी कोई भी बात पर प्रसन्न होती थी तब कोई न कोई गहना दे ही देती थी।अंगूठी तो जब भी ज्यादा अच्छा खाना बनाती तो भी मिल जाती थी।

बस ऐसे ही लाड़ प्यार में जिंदगी आगे बढ़ रही थी।कभी मायके जाती जमना तो उसे ससुराल की याद आती थी।कुछ उल्टा सा था,वैसे लड़कियों को ससुराल में मायके की याद आती होती हैं। वह तो मायके पहुंचते ही अपनी वापसी का दिन जाहिर कर देती थी ।

कहते हैं न कि जिंदगी और जल कभी एक सी धारा में नहीं बहते,और वही हुआ जमाना के साथ,एक शाम उसके पति की जगह उसका मृत शरीर घर वापस आया था।पूरा घर रोने पीटने की आवाजों से भर गया।पास पड़ोस भी आ गया और जमुना की चूड़ी तोड़ने की और गहने,नाक की नथ आदि उतरने की रस्म करने के लिए सभी बड़ी बुजुर्ग औरतों ने बोला।अब तक पति के गम में रो रही थी जमना ,वही अब अपने गहने और श्रृंगार को नहीं उतारने दे रही थी।सभी ने बहुत समझाया,उसके पति के नहीं होने से उसे अब श्रृंगार नहीं करना चाहिए अब वह बेवा थी किंतु वह टस से मस नहीं हुई।अब सभी बड़ों ने आपस में चर्चा की और उसको थोड़ा सामान्य होने पर दूसरे दिन रस्मे कर लेंगे वैसे भी रात ज्यादा होने की वजह से अंत्येष्टी में देर हो जायेगी।

अब यही बाते कर रहे थे कि जो अगले दिन शाम को जीता जागता, हंसता मुस्कुराता बंदा था वह राख हो चुका था।घर में भी श्मशान सी शांति छा गई थी।सब थक कर निढाल हो बिना खाए पिए इधर उधर लेट गए थे।

तय हुआ था कि दूसरे दिन रस्में हो जायेगी किंतु नहीं वह तैयार ही नहीं थी अपना सिंगार उतरने के लिए।उसकी मां ,बहन सब समजाके थक गए लेकिन वह थी कि जिद्द पर अड़ी हुई थी।

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए किंतु कोई समझा नहीं पाया उसे,सब समझा के हारे किंतु वह तैयार ही नहीं थी श्रृंगार और गहने उतरने के लिए ।सब ने मिल के उसे जबरन उतरवाने लगे किंतु वह भी कुछ नहीं कर पाएं, न ही श्रृंगार उतारा और न ही गहने उतार पाएं। हार के उसकी सखी शांति को बुलाया समझाने के लिए।जैसे शांति आई उससे लिपट जमना रोने लगी और काफी देर तक दोनों बाते करती रही।कुछ घंटे बाद शांति बाहर आई और बताया कि जमना का कहना था कि पति से वह बहुत प्यार करती थी उसके बिना जीना भी अच्छा नहीं लगता था उसे, लेकिन वह जब तक जिंदा हैं वह न ही श्रृंगार उतारेगी और न ही गहने क्योंकि ये उसके पति ने हीं दिए हैं उसे, इसलिए उनके जाने के बाद निकालेगी नहीं।अपितु उसको भी वह सजधज के गहने आदि पहनती थी तो वह भी खुश होता था,उसे अच्छा लगता था।पति के होते वह सज सकती थी तो अब क्यों नहीं ।ऐसे विचार हैं उसके की जीवन में कोई आता भी हैं तो जाता भी हैं, दुनियां को तो अपनी रफ्तार से चलना ही होगा।




जयश्री बिरमी


अहमदाबाद



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