बाल दिवस ही क्यों?
कई सालों से हम बाल दिवस मनाते हैं वैसे तो दिवस मनाने से उस दिन की महत्ता बढ़ जाती हैं ये बात सही हैं किंतु क्या अपने बाल धन को एक ही दिन संभालेंगे हम? नहीं बच्चे जैसा साफ मन तो सभी को ता उम्र रखना चाहिए यही स्वभाव ही तो उनकी महत्ता हैं।भोले भाले किंतु शैतान की आंत जैसे ये लगते ही इतने प्यारे हैं की पूछो ही मत।कभी ये शरारत कभी वो खिलौने को पूरे घर में फैला कर डांटने पर अभी समेट लूंगा बोल के भी नहीं समेटना भी हम को प्यारा लगता हैं।कोई भी छोटी सी भी चीज में से खेल बना लेने की कला उन्हे प्रभु ने जन्म से ही दी हैं,चाहे वह कागज का टुकड़ा ही क्यों न हो! यही तो बाल लीला हैं।कृष्ण जी की बाल लीला का दर्शन अपने बच्चे में होने लगते हैं।कैसे इन्हे डांट ,फटकार या मार सकते हैं इन्हें ये समझ से परे वाली बात होती हैं।एक प्रसंग याद आता हैं,हवाई अड्डे पर विमान में बैठने जा रहे थे तो आगे एक महिला अपने बच्ची को एक बैग थमा रही थी और बच्ची ने लेने से मना कर दिया और उस माई का दिमाग फिरा और लड़की को इतनी जोर से चांटा दे मारा कि उसका सिर साथ वाली दीवार से टकराया और नाक से खून बहना शुरू हो गया ,कैसे इतने जालिम हो सकते हैं हम अपने बच्चों के साथ।ये तो वो सुगन्ध वाला फूल हैं जो नादानियों के कांटो के बीच खिलता हैं,हमे उन्हे इन कांटो के बीच से निकाल अच्छी परवरिश दे जिम्मेवार नागरिक बनाना हैं।
खास कर बच्चे वो नहीं करते जो हम उन्हे करने के लिए बोलते हैं ,ये वोही करते हैं जो वह हमे करते देखते हैं।जिसका मतलब हमे उदाहरण बन के उन्हे सीखना चाहिए।आज कल स्क्रीन टाइम की समस्या सभी के घर में हैं,घर के सभी सदस्य हाथ में चल फोन ,या लैपटॉप या टीवी पर नजर गड़ाएं बैठे रहते हैं,जब आप हादसे चल फोन ,लैपटॉप या टीवी देखना नहीं छोड़ते हैं तो उनको भी आप छोड़ ने के लिए नहीं बोल सकते।घर में सब को अनुशासित रूप से तय समय में ही इन चीजों का उपयोग करना चाहिए।ये समय की जरूरत हैं उन्हे आप बिल्कुल नहीं छोड़ सकते लेकिन एक समय मर्यादा में उपयोग करना ही व्यवहारिक तरीका हैं।
ये नन्हे फूलों को ऐसी परवरिश देनी चाहिए कि जीवन में वे कभी भी किसी भी काम में गभराए नहीं ,हिम्मतवान बने और सभी परिस्थिति का हिम्मत से सामना कर सके।जिंदगी फूलों की सेहज नहीं हैं,संघर्ष का सामना भी करना पड़ता हैं । पढ़ाई के अलावा उनका दूसरे क्षेत्रों में भी विकास हो ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए।उनकी रुचि के अनुसार योग्य प्रवृति में व्यस्त रख कर भी बुरी आदतों से बचा सकते हैं।खाली वक्त में ही शैतानियां याद आती हैं उन्हे,तो खाली न रहने दें।
उनको सामाजिक भी बनाना जरूरी हैं,अपने मित्रों से वह मिलजुल के रहें और जगड़े और शिकायतों से बचे ऐसी परवरिश देने से बड़े होने के बाद उनमें अनुकूलन का गुण आने से सकारात्मकता बढ़ती हैं।जिससे स्वस्थ मानसिकता होने से उनका सर्वांगी विकास होता हैं।
बच्चों की अच्छी परवरिश करना हमारी पारिवारिक ही नहीं सामाजिक जिम्मेवारी भी हैं।समाज को एक शारीरिक ही नहीं मानसिक तरीके से भी स्वस्थ नागरिक देना हमारी फर्ज का एक हिस्सा ही हैं।देश को भी एक अच्छा नागरिक देना भी हमारा फर्ज हैं।
नकारात्मक परवरिश पाने वाला बच्चा डरपोक,भीरू और उद्दंड होगा।चाहे पढ़ाई में अच्छा होने के बावजूद शिक्षकों के लिए सरदर्द बन जाते हैं। कोई भी नियम का पालन नहीं कर शिस्त में नहीं रह सकता हैं।कभी कभी गुनाहित कार्यों में भी सम्मिलित हो जाते हैं।वैसे भी आजकल के जमाने में जहां मोबाइल आदि का उपयोग कर बच्चे कई गलत चीजों से परिचित हो जाते हैं जो उनकी उम्र के लिए योग्य नहीं हैं।ऐसे में परवरिश का ध्यान रखना अति आवश्यक हैं।
ऐसे में अपने बच्चों को इतनी सख्ती से नहीं रखना चाहिए कि उनकी वृद्धि पर नकारात्मक असर हो और इतना भी लाड़ प्यार नहीं करें कि वह बिगड़ जाएं।
इन नन्हे फूलों को दुनियां के कांटो से बचा कर ऐसी परवरिश देने की जरूरत हैं की हम देश को एक अच्छा नागरिक दें।
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