Ashru arghy mera hai by Dr. H.K. Mishra

 अश्रु अर्घ्य मेरा है

Ashru arghy mera hai by H.K. Mishra

छोड़ गई तू मेरा हाथ ,

तेरा एहसास नहीं भूला,

तड़पता रहा  दिन-रात ,

तेरा मैं प्यार नहीं भूला ।।


लिखते गीतों को चुपचाप,

मगर मैं कह नहीं पाता  ,

सुनाऊं  भी किसको ,

साथ नहीं किसी का  ।।


गिरहस्थी टूट गई अपनी,

जोड़ा था जिसे मिलकर ,

बिखरा आज जीवन है ,

बहुत अफसोस इसका है ।।


मेरा स्वाभिमान तेरा है ,

कभी अभिमान न देना ,

जीना और मरना भी ,

एक साथ बना देना। ।।


मेरा जीना तुम ही से था ,

बिछड़ना भी नहीं जाना ,

मेरे अरमां जीवन का ,

तुम्हें खोकर ही टूटा है ,।।


बताऊं क्या कहूं किसको ,

कोई अपना न मेरा है ,

जीने को जिया अब तक,

तेरी यादों के सहारे ही  ।।


कहती थी सदा मुझको,

खलेगा दूर रह कर ही,

बिल्कुल सच वही तो है,

सारे शब्द तुम्हारे हैं  ।।


आज बैठा एक कोने में,

उपासना का दिन भी है,

रोया अतीत में है मन ,

तुम भी पास बैठी हो। ।।


सूर्य उपासना का है दिन,

गुजरे बरस में  हम संग ,

यादें आज रोती हैं ,

तुम मुझसे दूर बैठी हो। ।


तेरी यादों  के सहारे ही ,

जिएंगे हम बता कब तक ?

गर मंजिल का पता होता,

रुक जाता वहीं कुछ क्षण। ।।


जलाशय का किनारा है ,

सूर्योपासना की बेला है ,

नदी तट भी तुम्हारा है ,

वही तट  तो हमारा है  ।।


तेरी यादों में डूबा हूं  ,

चलो तट पर मिलता हूं,

अतीत आया है चलकर,

अश्रु अर्घ्य किसे दे दूं। ।। ???


मौलिक रचना
                     डॉ हरे कृष्ण मिश्र
                      बोकारो स्टील सिटी
                       झारखंड ।

Comments