सीखा हैं जिंदगी से
पैदा होते ही तूने सिखाया हैं रोना ए जिंदगीजब देखा कुछ सिखाया हैं ए जिंदगी
कुछ अच्छा तो कुछ सिखाया हैं जिंदगी
घर में हो या बाहर सब से करना सिखाया समझौता ए जिंदगी
फिर नसीब में क्या हैं तू भी जाने हैं ए जिंदगी
मुझे तो मिली बेचारगी
और मायूसी ही ए जिंदगी
कल का तो पता नहीं किंतु
आज की ही बात हैं
न दिखाई समझदारी तो
वह नादानी ही तो हैं ए जिंदगी
छोड़ स्वाभिमान रुकी रही
मजबूरियों में
न ही लब्ज़ थे कुछ बोलने के लिए
अगर बोलती भी तो तोल तोल कर
सभी का मान रखने के लिए
बलि चढ़ा दिया स्वमान ए जिंदगी
सोचा था एकदिन लगेंगे पंख मुझे
कुतरे गए मेरी ही इजाजत से ए जिंदगी
न जुल्म हुआ न ही हुई शिकायत
मुद्दते निकल गई बिना लिए इजाजत ए जिंदगी
न ही किसी ने सहारा दिया और न ही थामा हाथ
रेत सा फिसला समा और फिसले जज्बात ए जिंदगी
गुजरते गए लम्हे बिना इजाजत ए जिंदगी
कोई छोड़ी ही नहीं मीठी सी परछाई ए जिंदगी
डराते रहे साए पुराने और
नए भी हो गए तैयार ए जिंदगी
जिक्र न करते अभी अगर किया होता सामना
कुछ तो देना था कटु आयुध मुझे भी ए जिंदगी
वार न सही प्रतिकार तो हो जाता ही
नहीं छूटते गहरे निशान आंसुओं के ए जिंदगी
लकीरें न होती गहरी जेहन पर
नहीं डरता भविष्य पुराने जख्मों को देख कर ए जिंदगी
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