कहानी
नथ का वजन
पूर्व भारत के कोई प्रांत की बात सुनी थी, जहां बहु की नथनी का वजन परिवार की संपन्नता का प्रतीक होती थी। वहां परिवार भी बड़े ही होते थे उस जमाने में। दत्ताजी अपने बेटे को ब्याहके फूल सी बहु लाएं थे।पूरे गांव की औरतें और बच्चे जो रिश्ते में कुछ भी नहीं लगते थे , वे भी बहु को देखने आते थे और खूब प्रशंसा करते हुए जाते थे। और दत्ता जी और उनका परिवार खुशी से फूले नहीं समाते थे।बहु का नाम भी उसके रूप और गुण के अनुरूप ही था,सुमन।हर वक्त मुस्कुराता चेहरा और बड़ों के प्रति आविर्भाव आदि की वजह से परिवार में खूब मान और प्यार मिल रहा था सुमन को।
दत्ता जी के परिवार का भी नाम भी था गांव में ,कारोबारियों में भी अच्छी साख थी।जब से बहु आई थी तब से कारोबार में भी खूब मुनाफा हो रहा था।दिन दो गुना रात चौगुना बढ़ ने लगा था कारोबार।घर में जैसे खुशियों की बहार आई हुई थी बहु सुमन के आने से और उसी के साथ घर के रिवाज के मुताबिक सुमन की नथ वजन में हल्की और छोटी थी उसे थोड़ी बड़ी और वजन में ज्यादा करने के लिए सुनार को बुलाया गया ,परिवार का नाम बढ़ाने के लिए, उसकी नथ को पाव तोले की बनाने का ऑर्डर कर दिया। और कुछ दिन बाद सुनार आया और पाव तोले की नथ पहना गया सुमन को और सुमन भी नई नाथ पहन खुश थी।वह और ज्यादा खुश रहने लगी क्योंकि परिवार में उसका नाम बढ़ा था, मान बढ़ा था घर की उन्नति का सारा श्रेय उसी को मिला रहा था।
और धीमे धीमे व्योपार में उन्नति होती रही सुमन की नाथ भारी होती गई। अब एक बार फिर सुनार आया और पाव तोले से आधे तोले की नथ पहनाई गई। और साल भर में तो पौने तोले की नाथ पहना दी गई। और अब पौने तोले की नथ का वजन छोटी सी सुमन की नाक को उठाने में तकलीफ होने लगी थी किंतु एक डर बैठ गया की अब की बार अगर कारोबार में मुनाफा ज्यादा आया तो वह कैसे उठायेगी नाथ का वजन।बहुत ही परेशान रहने लगी,चेहरे पर नाक और नाक में पौने तोले की नथनी उठाके ,उठना–बैठना और सोना बहुत ही मुश्किल लग रहा था।शायद मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की अब और कारोबार में बढ़ती न हो,जिससे उसकी नथ का वजन बढ़ना बंद हो जाएं।
किंतु उसकी प्रार्थना का कोई परिणाम न आया और खूब तरक्की होने लगी और नथ भी अब पूरे एक तोले की हो गई। न हीं उठते बनता था और न हीं सोते बनता था।नाराज गुड़ियां सी पति को उलाहना देती रहती थी उसी के उपर ही तो उसका बस चलता था।खूब नाराज सी रहती थी पति से, पूरे घर में चहकती चिड़ियां अब मुरझाई सी बैठी रहती थी।उसकी सुगंध , जो उसकी खिलखिलाहट थी गायब हो गई थी।वह उदास हो बैठी रहती थी। सोन चिरैया के पर जैसे सोने की नथ ने कुतर दिए थे।अब हर वक्त एक एहसास उसके मन में डराता रहता था, सांझ जब ससुर और उसके पति दोनों घर आते थे तो उसके पेट में जैसे कोई गर्म तेल उड़ेल रहा हो ऐसा लगता था।लगता था वह घर से भाग जाएं कहीं, ताकि कारोबारी मुनाफे के बारे में सुनना नहीं पड़े।और फिर आज वही समाचार आए कि कारोबार में अच्छी तरक्की हो रही हैं।और फिर दूसरे दिन सुनार ने आके उसकी नथनी का वजन बढाके कैसा डिजाइन करना था वो हो गया और कब तक मिलेगी आदि बातें होती रही लेकिन वहां उसकी मानसिक रूप से उपस्थिती थी ही नहीं।सुमन को लगा की वह अपने होश खो रही हैं लेकिन मजबूर सी एक और बैठी रही।घर में सब बहु के अच्छे पैरों का पड़ना और उससे आई बरकतों के बखान कर रहे थे तब सुमन बेचारी उनकी नाक पर होने वालें अत्याचारों के बारे में सोच घबरा रही थी।और कुछ दिन बाद आ गाई थी सवा तोले की नथ,दिल करता था उठ के चली जाए, जब सुनार आए तब वह घर में ही कही छुप जाएं और बच जाए इतनी भारी नथ पहन ने से,किंतु नहीं कर पाई कुछ और बैठना पड़ा सुनार के सामने जिसने पुरानी नथ उतार उसे नई भारी भरकम नथ पहनादी।आंखो के आंसुओ को छुपा कर उठ उसके कमरे में गई और और बिस्तर पर पड़ी और जोर जोर से रो पड़ी और रोते रोते कब निंद आई पता ही नहीं चला।
सुबह उठी तो नाक की पीड़ा का एहसास हुआ,उसने नाक की नथ को अपने हाथ की हथेली का सहारा दिया और होले कदमो से उठी और दैनिक कामों से निबट कर रसोई घर में गई किंतु दर्द के मारे परेशान थी।और एकदिन फिर वही सब दोहराया गया और उसकी नथ का वजन डेढ़ तोला हो गया।
अब उसका सब्र का बांध टूटने लगा था और आगे अगर फिर नथ का वजन बढ़ा तो अब पौने दो तोला होगा और कैसे सह पाएगी वह उस सितम जो उसकी नाक पर होने वाला था। हर वक्त उदास रहने वाली सुमन हर शाम ओर उदास हो जाती। सामान्यत: पत्नियां शाम को पति के आने की आतुरता से राह देखती हैं ,वह सहम के रह जाती थी।और कुछ महिनों बाद वह दिन आ ही गया।ससुर और पति ने आकर अपने कारोबार की ताजा तरक्की के समाचार दिए और फिर सुनार को बुलाने की बात हुई।घर परिवार की तरक्की से खुश होने की बजाय डर से सेहमना उसकी नियति बन गई थी।इस बार उसने विद्रोह करने की ठान ली थी।बहुत कोसेगी सास और ससुर को,पति की तो खैर ही नहीं रहने देगी ऐसे ऐसे खयाली पुलाव पकाती रही सारा दिन और फिर एकबार सुनार आया और दो तोले की नथ बनाने का ऑर्डर ले गया।अब तो सुमन के लिए खाना पीना दुश्वार हो गया था।और परेशान हो इन सब से कैसे छूटे ये सोच रही थी कि सुना उसकी ददिया सास आने वाली थी।वह और डर गई क्योंकि वह तो और रूढ़िवादी होगी और पता नहीं क्या क्या नए नियमों में उसे फंसाएगी और भी क्या क्या!और आ गई ददिया सास भी,ऊंची लंबी,शरीर पर कोई ज्यादा उम्र का असर नहीं दिख रहा था ,सास की बड़ी बहन सी लग रही थी।ना ही कमर से जुकि हुई और न ही चलने के लिए सहारा लेती थी, वह सीधी ही बैठक वाले कमरे में आ दीवान पर बैठ गई। सुमन को उन्हों ने शादी के समय ही देखा था, जब वह महकती,फुदकती कली थी और आज उसके मुरझाए चेहरे को देख कुछ तो वहम हुआ था उन्हें भी।दादी से बतियाते हुए घर के सभी सदस्यों को दो दिन ही लगे और बाद अपने अपने कार्यों में व्यस्त हो गए और मौका देख उन्होंने सुमन को अपने पास बुला प्यार से पूछा कि वह कैसी थी और इतनी उदास क्यों थी।थोड़ी हमदर्दी पाकर कुसुम फफक कर रो पड़ी और अपनी खून से सनी नाक दिखाई और जो दर्द उसने नथ का वजन ढो कर पाया उसका पूरा विवरण बता तो दिया किंतु उनसे डर भी तो लग रहा था कुसुम को।फिर चुपचाप बाहर निकल गई।
दूसरे दिन परिवार के सभी सदस्यों को दीवानखाने में एकत्रित होने का आदेश दादिमा का आ गया।सब एकत्रित हुए तो दादीमां ने सब को कारोबार में हुई बढ़ती के लिए बधाई दी और साथ में उस रिवाज के बारे में भी बात की ,जो बहु की नथ का वजन बढ़ता था।तब उन्हिकी बेटी बोली की उसने भी तो अपनी नथ का वजन सहा हैं ,सुमन कुछ अलायदा नहीं कर रही थी,तब दादी ने कहा कि उसकी आखिर वाली नाथ कितने तोले की थी।तब सास चुप हो अपनी मां की शक्ल देखने लगी क्योंकि उसकी नथ कभी १ तोले से ज्यादा हुई ही नहीं थी।बहुत चर्चा के बाद ये तय हुआ की अब आगे कितना भी कारोबार बढ़े लेकिन १ तोले से ज्यादा की नथ किसी की भी नहीं बनेगी।और ये रिवाज हमेशा के लिए तय हैं।सुमन,वाकई सुमन की तरह खिल गई।फिर सुनार आया किंतु अब सुमन प्रफुल्लित थी,उसको १ तोले वाली नाथ पहना दी गई और सुमन ने अपनी पूरी पीढ़ी के लिए रिवाज बदल ने का श्रेय प्राप्त हुआ।
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