नकाब ओढ़े चेहरे
चुंकि फायदेमंद रहती हैं
हिंसक व अराजक परिस्थितियां
चुनावों में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए,
इसलिए ज्यादातर राजनेताओं का
जनता से शांति बनाए रखने का आह्वान
होता है महज दिखावा भर,
ऐसे नेता एक तरह के परजीवी हैं
जिनकी राजनीति पल्लवित व पोषित होती है
जनता के आपसी
लड़ाई-झगड़ों और दंगों पर।
जान पर जब बन आती है
तो इंसान की सोच सीमित हो जाती है
अपनी व परिवार की सुरक्षा तक,
लोकतंत्र के मूल्यों की,
अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की,
अच्छी सड़कों व जीवन स्तर में सुधार की,
मानवाधिकारों की बात
कौन सोच पाता है फिर,
चुनती है ऐसे माहौल के परिणामस्वरूप
जनता मजबूरी में
अपने धर्म और जाति के ही ठेकेदारों को,
जो ओढ़े रहते हैं धर्म रक्षक के नकाब
हरदम अपने चेहरों पर।
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