"हममें राम रावण भी"
राम-रावण कोई मनुज नहीं
वे तो मन के कारक हैं।
उच्च विचारों की शृंखला
राम के समकक्ष हैं।
दुःह विचारो की शृंखला
हमारे मन का रावण हैं।
कर्म हमारे ही हमको तो
राम -रावण बनाते हैं।
मर्यादा- विवेक ही तो हमें
राम- रावण बनाते हैं।
मन के भावों का नियंत्रण
मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाये।
अशान्त उद्वेलित मन रावण।
जहाँ विजय क्रोध मोह में
राम वही तो होते हैं।
विलिप्त मोह माया में जो
वो रावण हो जाता हैं।
अंहकार पर विजय ही
हमें राम बनाता है।
मद् अंहम् के साथ जाये
तो रावण बन जाता है।
हम में राम-रावण दोनो
सात्विक गुणों को बढ़ाना है।
असत्य दुर्विचारो वाले रावण
पर विजय हमें पाना है।
जाग्रत चेतना को करके ही
आचरण उच्च बनाना है।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com