धर्म क्या है?
धर्म क्या है एक छोटा सा शब्द है पर अपने अंदर गूढ़ अर्थ और रहस्य समेटे हुए है।ऊपरी तौर पर अलग-अलग सम्प्रदाय के लोगों के अलग-अलग धर्म है-कोई हिन्दू -मुस्लिम-सिख-ईसाई ।इसमें भी कयी भागों में विभक्त है ।हिन्दुओं में जैन बौद्ध शिव शाक्य और विष्णु कृष्ण अनेक भागों में विभक्त है।कुछ सिद्ध संतो के अनुयायियों ने अलग सम्प्रदाय बना लिया।पर अब भी प्रश्न वहीं का वहीं है--धर्म क्या है?
ऊपरी तौर में कट्टरता ही धर्म है?या....आत्म शान्ति....आत्ममंथन.....आत्म ज्ञान सर्वोपरि है।
मेरे विचार से कर्म काण्ड से ऊपर उठकर मानसिक रूप से चिन्तन मनन और आत्म नियंत्रण सर्वोपरि है।जहाँ व्यक्ति का सर्वोपरि विकास हो,आत्म शुद्धि हो।आत्म शुद्धि से मेरा तात्पर्य ईर्ष्या, द्वेष,घृणा से ऊपर उठकर आध्यात्मिक चिंतन मनन और परोपकार से है।
ऊर्ध्वगामी चेतना की ओर अग्रसर होना।हमने जन्म क्यों लिया ?किस उद्देश्य से लिया ये संसार के मायाजाल में फंसकर भूल ही जाते हैं।हमारी आत्मा ने कितने चोले बदले और कितने और बदलेगी इस ओर ध्यान नहीं जाता।इस जन्म मृत्यु के चक्र से आजादी के लिए प्रयास करना होगा ।धर्म ही हमें ईश्वर आस्था से जोड़ने वाली मजबूत कड़ी है।जो धर्म के माध्यम से हमारे व्यवहार को नियंत्रित रखता है।हमें पराशक्ति के साथ बाँधे रखता है।धर्म ही कर्मो के प्रारब्ध को बताकर व्यक्ति को अनुचित कार्यो से दूर रखता है।
धर्म का आज ओछा इस्तेमाल कर रहे धर्म के ठेकेदार।धर्म की आड़ में अनैतिकता और दुराचार भी हो रहे।
यद्यपि हमारी आत्मा परमात्मा का अंश है और अंत में परमात्मा में विलीन होना है।हमारी आत्मा जानती है और कयी बार हमें सचेत भी करती है।जरूरत है अंदर की आवाज को सुनने की।उसे पहचानने की।सत् के मार्ग पर चलने की।अपने अंतर्मन को एकाग्र करने की।संसार में कमल की तरह खिलने की।समय से जन्म और मृत्यु होती है ,हमें समय का सदुपयोग अपनी चेतना को ऊपर उठाने में करना है मेरे विचार से धर्म आध्यात्म की ओर लेकर जाता है।जहाँ पूर्ण शान्ति मिलती है।
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