गीत
बहते रहते नयन
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बहते रहते नयन
गाँव की नदिया सूखी है।।
बिलो रहे नवनीत
उन्हीं की रोटी रूखी है ।।
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पग पग पर पानी था
अब वह धरती है बन्जर ।
पक्के डेरे बना रहे हैं
फिर काले विषधर ।
दाना सानी खाने वाली
गैया भूखी है ।।
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उनकी लाठी उनकी भैंसें
उनकी ही घुड़साल ।
उनकी आँखें ओढ़े बैठीं
हरा रँगीला शाल ।
उनके खेतों में ही उगती
सूरजमुखी है ।।
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दिन बदले मौसम बदले हैं
बदल रहा है देश ।
लेकिन हम सत्तर सालों में
बदल सके ना भेष ।
बाबा के मुख पर चिन्ता है
अम्मा दुःखी है ।।
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बहते रहते नयन
गाँव की नदियां सूखी है ।।
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