आम्रपाली
मां
ऐसी क्या मजबूरी थी
जो जन्म देते ही मुझे
आम्रवन मे छोड़ कर चली गई
शायद मेरे नसीब. मे नहीं था
माँ की छाती से लिपटकर
अपने को सुरक्षित अनुभव करना
दूध पीते पीते
गहरी नींद मे सो जाना
मैं सोचती रही
पर तुम लौटकर नही आई ।
माँ मैं तुम्हारे संग
खेलती खेलती बड़ी होती
तुम्हारी सेवा करती बड़ी होती
माँ ,तुम्हारे जाने के बाद
मैं हिचकियां ले रही थी
रोने की आवाज सुनकर
आम्रवन का माली
मुझे गोद मे उठाकर
जीवन दान दिया
मां तुम गोद मे लेती तो
औऱ बात होती
आम्रवन मे
महानाम संग खेलती
डाल पर झूला झूलती
मैं बड़ी हो रही थी.
मेरा नामकरण
किसी ने किया नहीं
आम्रवृक्ष के नीचे पली थी
आम्रपाली पुकारी गई
माँ तुम होती तो
औऱ बात होती .
अबोध बच्चे की माँ ही
पहली शिक्षिका होती है
उससे मैं वंचित रही
आँधी मे टूट कर गिरे टिकोरे बटोर कर लाती
पिता उसे गिनना सिखाया
इसी तरह
दिवस पहर.पल छिन भी
समझने लगी
माँ तुम होती तो
औऱ बात होती
मैंने कोयल की कूं कूं से
स्वर ताल
चीड़ियों की चीं चीं से
संगीत
मयूर नृत्य से नृत्य सीखा
इसतरह नृत्य संगीत से
मैं पारांगत हुई
मेरी चर्चा
वैशाली के संथागार मे होने लगी
लिच्छवि कुमारों मे होने लगी
कौमुदी महोत्सव मे
सारी रात्रि लिच्छवि उत्सव मनाते
शाल पुष्पों से क्रीड़ा करते
मैं धीरे धीरे उनमें घुल मिल गई
मैं खेल खेल मे
बड़ी होती गई
मां तुम होती
तो औऱ बात होती
उस साल
आम्रवन मे खूब बौर लगे थे
बौर टिकोरे मे तब्दील होकर
गदराने लगे
मेरे गदराये यौवन देखकर
पिता महानाम को
मेरे विवाह की चिंता सताने लगी
मैं बिन माँ ,जाति विहीन कन्या
कहाँ ब्याही जाऊँ
किस जाति का वर
मुझे अपनायेगा
यही चिंता पिता महानाम को खाये जा रही थी
वह रोज वैशाली भ्रमण मे निकलते
पर योग्य वर नहीं मिला
यों रूप सौंदर्य ,मधुर कंठ ,नृत्य के दीवाने लिच्छवि कुमार रहते थे
पर विवाह के लिये
कोई आगे नहीं आया
मां तुम होती तो
औऱ बात होती
एक दिन
पिता महानाम को मैंने
उदासमना बैठे देखा
कारण जानना चाहा तो
दु:खी मन पिता बोले ,
कल लिच्छवि -सभा मे
प्रस्ताव पारित हुआ है
कि आम्रपाली
रूप सौंदर्य व नृत्य के लिए
वज्जि प्रदेश मे विख्यात है
लिच्छवि कुमारों की प्रिय
वैशाली की शान है
इसलिए वह किसी एक घर की वधू नहीं हो सकती
वह सम्पूर्ण नगर की वधू है
नगर शोभनी है
मां ,सर्व गुण सम्पन्न होते हुई अपनी पसंद का वर चुनने से
मैं वंचित कर दी गई
एक ही पारित प्रस्ताव से
भोग्या की वस्तु हो गई
हमेशा के लिये अभिशप्त हो गई
माँ , मैं विरोध करती तो किसके बलपर
माँ तुम होती तो
औऱ बात होती
मैं आम्रवन छोड़ कर
वैशाली नगर मे आ गई
लिच्छवि सभा ने
स्वर्ण कलश भवन बनवा दिया
सेवा के लिये सेवक -सेविकायें
शान शौकत की
वस्तुओं से परिपूर्ण था आवास
मेरी ख्याति
वज्जि देश से बाहर
मगध,काशी कोसल मे फैलतीगई
मेरे अंजुमन मे
एक शाम बैठने के लिये
मुँह मांगी पर्ण मिलते
मेरी ख्याति सुनकर
मगध नरेश बिम्बसार
लिच्छवि - युद्ध छोड़कर
सात रात गुप्त वास किया
उनके ही संसर्ग से
मैं बिन ब्याही माँ बनी
माँ तुम होती तो
औऱ बात होती
मैं खूब प्रसिद्धि पायी
धन धान्य से सम्पन्न थी
धीरे धीरे मेरा यौवन
ढलान पर आने लगा
मेरे सुंदर केश सन की भांति सफेद होने लगे
मणि -मुक्ता दंत गिरने लगे
भौतिक जीवन से
विरक्ति होने लगी
एक दिन वैशाली मे
गौतम बुद्ध का आगमन हुआ
मैं ऐश्वर्य की जिन्दगी छोड़कर बुद्ध के शरण मे आ गई
महावन बुद्ध संघ को अर्पित कर
भिक्षुण रूप धारण कर
संघ के शरण मे आ गई
अब संघ ही मेरा संसार है
भिक्षु भिक्षुणियां ही
मेरे भाई बहन
यहीं मान सम्मान मिला
बौद्ध संसार में
हमेशा याद की जाती रहूँगी
माँ तुम ह़ोती तो
औऱ बात होती ।
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