टूट पड़ा आकाश ...!!!
बीती रात सहसा
टूट पड़ा आकाश ।
आलय देवालय सब एकाकार ।
अनवरत गर्जना
दामिनी दमक ....
लपलपाती ,
सब लील जानें को
हठ ठाने
रौद्र रूप में ,आसमान से उतरी ।
"एक मैं"
का उद्बोधन कराती प्रकृति ।
प्रकृति का प्रचंड रूप ,
तांडव नर्तन करता ,प्राकट्य हुआ ।
सूखे नाले ताल बने
क्षत-विक्षत जन -जीवन
हाहाकार तबाही का
सबनें देखा वह मंजर ।
लुट गये दाम लुटिया के
बह गए खिलौनें बिटिया के ,
कुटिया का अता नहीं
बाबा का पता नहीं
चीत्कारें - चीखें ,
हाल - बेहाल ।
प्रकृति दर-दरवाजे दस्तक देकर ,
"वसुधैव - कुटुम्बकम" का " विजय" पाठ पढ़ाती ,
आगे बढ़ती जाती ,
बीती रात सहसा , बीती रात सहसा ।।✍️✍️
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम. ए., बी.एड , ( हिन्दी )
स्वरचित मौलिक रचना
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