शिप्रा के किनारे
महाकाल के प्रांगण में जब ,
हम दोनों चलकर आए थे ,
दर्शन पूजन कर शिव का ,
शिप्रा तट पर चल आए थे ।।
महाकाल की महिमा सारी ,
नगरी पर आच्छादित थी ,
शिप्रा अपनी गोदी में ले ,
सरल स्वच्छ प्रवाहित थी ।।
कहता मेरा अपना दर्शन ,
कालिदास की प्रणय कथा ,
शिप्रा संग प्रवाहित है ,
यही उज्जैन शिव नगरी है ।।
कालिदास का मेघदूत है ,
लेकर आया प्रणय संदेश ,
उज्जैन नगर पर मेघा छाया,
शिव दर्शन को आतुर है। ।।
कितना अच्छा सौभाग्य तुम्हारा,
प्रणय कथा से आप्लावित हो ,
चल कर आया शैल शिखर पर,
मेघा को विराम मिला है ।।
नूतन नूतन कवि गीतों को ,
गाने का सौभाग्य मिला है ,
गा मेघा ऊंचे स्वर में कुछ,
मुझको भी आह्लाद मिला है ।।
सुन मेघा जाना है तुझको,
पावन पथ पर गबन तुम्हारा,
विरह कांता से मिलना है ,
संदेशा कवि का भी देना है ।।
सफल बहुत हो यात्रा तेरी ,
युगल प्रणय संयोग निभाना,
प्रणय हृदय के विशेष दूत हो,
साहित्य सरिता का संगम हो।।
तुम पर है अभिमान हमारा,
हर लेना संताप सभी का,
निर्मल निश्छल मेघा तेरा ,
प्रणय ह्रदय मनुहार तुम्हीं ।।
पावन तेरी रिमझिम वर्षा ,
हरने को मनुताप मिला है,
संदेश हमारा देना जाकर ,
मेरी प्रिया वियोग पड़ी है ।।
मिलने को मेरा मन आतुर,
विरह प्रेम में कैसी होगी ,
आ कर देना संदेश शीघ्र ही,
नभ पर तेरा ही शासन है ।।
मेघदूत तुम कालिदास के ,
हर विरही के मन भावन ,
विरही मन शांत नहीं रहता,
करना पावन जीवन अर्पण ।।
शिप्रा तट पर मेरी कुटिया ,
पुन: मिलेंगे इस तट पर ,
हम कर लेंगे प्रतीक्षा तेरी ,
पावन जल अर्पण तुझको।।
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