प्राण-प्रिय
अधरों पर कुसुमित प्रीत- परिणय
केशों में आलोकित सांध्य मधुमय
चिर- प्रफुल्लित कोमल किसलय
दिव्य-ज्योति जैसी मेरी प्राण-प्रिय 1
दृगों से प्रवाहित होता रहता हाला
वो मेरी मधुकलश वोही मधुशाला
मृग- पदों से कुचालें भरती बाला
प्राण - घटकों की उष्मित दुःशला 2
ब्रह्माण्ड की नव- नूतन कोमल काया
मरूभूमि में आच्छादित शीतल छाया
व्योम की मस्तक पर आह्लादित माया
मनभावन मुस्कान की वो सरमाया 3
विटपों के अंगों पर जैसे कोई चित्रकारी
वायु के बाहुबलों पर द्रुत वेग की सवारी
चहुँ दिशाओं की वो एक-मात्र पैरोकारी
वो ही रम्भा -मेनका, वो ही फूल कुमारी 4
भाव-भंगिमा में देवी का अवतरण
कवि के कविता का नया संस्मरण
किसी किताब का प्रथम उद्धरण
जिस्म से जवान, ख्यालों से बचपन 5
जो भी शांतचित्त हो देख ले, विस्मित हो जाए
इहलोक में विलीन हो जाए , चकित हो जाए
खड़ी बोली से देवों की बोली संस्कृत हो जाए
किसी देवालय के प्रांगण सा झंकृत हो जाए 6
उसके आगमन से जीवन में इष्ट पा लिया
अपने उपेक्षित मन का परिशिष्ट पा लिया
किसी अरुंधति ने अपना वशिष्ठ पा लिया
मूक अक्षरों ने साकार होता पृष्ठ पा लिया 7
तुम्हारे होने से अपने सुकर्मों का ज्ञान हुआ
शील और सौम्य परिणति का प्रमाण हुआ
साधारण जीवात्मा सा जीव, मैं महान हुआ
असफलता से सफलता का सोपान हुआ 8
शीश झुका का प्रतिदिन ईश-वंदन करता हूँ
अवतरित महिमा का अभिनन्दन करता हूँ
इस अनुकम्पा का बारम्बार भंजन करता हूँ
मेरी प्राण-प्रिय, तुम्हारा अनुनन्दन करता हूँ 9
मेरे सजीव होने का अनुपम आधार हो तुम
मैं जिस मंझधार में था,उसकी पतवार हो तुम
मैं तो बस लेश्मात्र हूँ,मेरा सारा संसार हो तुम
हे प्राण-प्रिय,मेरी जीवटता का आह्वान हो तुम 10
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
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