नयी गज़ल से उसे नवाज़ दूँगा
खामोश रह कर आवाज़ दूँगा ।
बहुत खुश रहूँगा उसे भुला कर
आशिक़ी को नया रिवाज़ दूँगा ।
ज़िक्र नहीं करूँगा ज़िंदगी भर
फिक्र को नया ये अंदाज़ दूँगा ।
रश्क करेंगे रक़ीब भी मेरे साथ
नफ़रत करने को समाज दूँगा ।
ज़ुर्रत कर नहीं सकता दिल भी
अजय इतना उसे रियाज़ दूँगा ।
-अजय प्रसाद
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