मुक्तिधाम
प्रीत की रीत निभाने को
दो गीत मिले गाते गाते,
एक प्यार तुम्हारे पाने का,
दूजे दर्द भरे एहसासों का ।।
जीवन ने करवट ले ली है,
दो पुष्प तुम्हें श्रद्धा के हैं,
जीवन की अगली बेला में,
पुन: मिलन की आशा में ।।
इक चुभन सी शूल जैसी,
दे सका न त्राण तुझको ,
प्रयाण काल में विकल ,
सुकून दे सका नहीं ,। ।।
विधि का विधान क्या ,
यही था लिखा हुआ ,
प्रेम में वियोग का,
कैसा बना संयोग था ।।
तेरे आंचल की छाया में,
थकन थोड़ा मिटाता हूं ,
बातों ही बातों में चल थोड़ा,
सच तुझको बताता हूं ।।
आसमां की बाहों में,
देख चांद तारे सोए हैं,
हम धरा पर दूर उससे ,
चैन क्यों पाते नहीं ।।
मैं भी तो मुसाफिर हूं,
शब्दों की सवारी पर,
लिखने का हक थोड़ा,
मुझे दे दो कहानी पर ।।
रोना और हंसना क्या,
बीती हुई जवानी पर ,
बचा है पास जो मेरे ,
वही तो मात्र अपना है ।।
ना बाकी है बचा कुछ भी,
कहने की हसरत क्या ?
मिली थी जो हमें जिंदगी ,
उसी का आज रोना है। ।।
टूटा आज बंधन जो,
उसी का दर्द इतना है,
जहां हो सुखी रहना,
यही विनती हमारी है ।।
शुभ शुभ हो यात्रा तुम्हारी,
निर्मल पथ की अधिकारी,
पावन पथ निर्मल तेरा ,
यशोगान होगा तेरा ।।
धरा धाम से यात्रा तेरी,
प्रभु धाम तक जाएगी,
वहां तुम्हारी प्रतीक्षा है,
स्वयं प्रभु स्वागत में हैं ।।
प्रभु स्वयं ही चरणों में,
देना अपना निर्मल प्यार,
मैं यात्रा पर निकला हूं,
कर लेना मुझको स्वीकार ।।
हम सब पथिक तुम्हारे हैं,
विनती करता बारंबार ,
चाकर हम हैं बहुत पुराने,
धाम तुम्हारा आना है ।।
अग्नि सैया पर स्वयं सजा,
तेरे चरणों में भेजा है ,
विश्वास बहुत है मेरा ,
करना स्वीकार इसे भी। ।।
पावन पावक की ज्योति,
लेकर दिव्य सवारी ,
यात्रा उसकी उज्जवल,
चरणों में होगी पूरी ।।
विश्वास न खंडित करना,
प्यार बहुत पाने का ,
जीद हमारी अपनी ,
स्वीकार इसे कर लेना ।।
बिनती में बैठ सदा हम,
तेरा नाम लिया करते थे,
तेरे चरणों की दासी,
बनी हुई थी कब से। ।।
आज सफलता पाई ,
बनी चरणों की दासी ,
ध्यान सदा तू रखना ,
प्यार तू अपना देना ।।
कृपा बनाए रखना ,
मुक्ति की थी इच्छा ,
पूर्ण किया है तूने ,
बहुत नमन है तेरा ।।
मुक्तिधाम की आसक्ति,
याद दिलाने आती है ,
प्रभु चरणों में है निवेदन,
ले चल मुझे सहारा देकर। ।।
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