मधुर संगीत वीणा का
तेरी वीणा की मधुर ध्वनि,
मां सदा भाव भर देती है,
अंधकार भरे अंतर उर में,
सौभाग्य तुम्हीं भर देती है। ।।
ध्वनि तुम्हारी मन वीणा को,
झंकृत सदा कर देती है ,
गाने को मन विहव्ल होता,
छंद नए बन जाते हैं ।।
तेरा आशीष सदा मुझको,
मिलता आया जीवन में ,
आराधन के शब्द मिले हैं,
तेरे चरणों के नीचे ।।
क्या गांऊ क्या बांधू उर में ,
ललक बहुत बढ़ जाती है ,
तेरी ध्वनित वीणा के नीचे,
अपना जीवन दिखता है ।।
मधुर संगीत वीणा का ,
तेरा आशीष विद्या का ,
मिला मेरे ही जीवन में ,
बहुत उपकार है तेरा ।।
धरा पर ज्ञान की माता ,
हमारी भारती माता ,
सदा उर बासनी मेरी,
बहाती ज्ञान की गंगा ।।
वंदना के स्वर तुम ही हो,
हर छंदों के बंद्य तुम ही हो,
नारद की वीणा के स्वर तू,
मां बसी हुई मेरे कंठों में ।।
चल गाऊं तेरे चरणों में ,
गीत नए जो अपने मन के,
धन्य धरा तू करती आई ,
मधुर गीत मां वीणा से ।।
शब्दों का कुछ ज्ञान मिला ,
मां तेरे स्वर चरणों में ,
बहता निर्झर गायन करता,
मां महिमा तेरी गोदी में ।।
आराधन का आशीष मुझे दो,
स्वर मुझको मां अपना दो ,
जीवन के हर दर्द हमारे ,
मां के चरणों में अर्पित हो ।।
मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।
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