Khamoshiyan bolti hai by Jitendra Kabir

 खामोशियां बोलती हैं 

Khamoshiyan bolti hai by Jitendra Kabir


यह सच है कि तुम बोलते कुछ नहीं

बस तुम्हारी खामोशियां बोल जाती हैं

सामने आते हो मेरे जब भी कभी

होंठों पे हल्की सी मुस्कान खेल जाती है।


मन में चलता है तुम्हारे द्वंद कि क्या करें

किस तरीके से बात हम तक पहुंचाएं

फिर इस चिंता में जज्ब करते हो खुद को

कि कहीं बात जमाने में न खुल जाए।


और इधर मैं कहता हूं कि तांडव अगर

 होना है तो आज, इसी वक्त हो जाए

छिन्न- भिन्न हों सृष्टि के सारे कायदे

प्रलय में भी प्रेम की फसल लहलहाए।


                                जितेन्द्र 'कबीर'

यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।

साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'

संप्रति- अध्यापक

पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

संपर्क सूत्र - 7018558314

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