Hindi maathe ki bindi lekh by Satya Prakash
हिंदी माथे की बिंदी
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, साक्षर से लेकर निरीक्षर तक भारत का प्रत्येक व्यक्ति हिंदी को बोल सकता है तथा समझ सकता है ।14 सितंबर 1949 का दिन भारतीयों के लिए गर्व का क्षण था जब संविधान सभा ने हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान किया।परंतु कुछ गैर हिंदी भाषी राज्यों ने इसका जमकर विरोध भी किया।हिंदी के सर्वत्र विकास के लिए आज वर्तमान समय में हिंदी दिवस, हिंदी पखवारा दिवस मनाया जाने लगा ।पखवारा दिवस मनाना इस बात को पूर्ण प्रमाणित करता है कि आज हिंदी दोयम दर्जे की भाषा बन कर रह गई है। सर्वप्रथम 1918 में महात्मा गांधी जी ने हिंदी को राजभाषा बनाने की बात कही थी परंतु हिंदी माथे की बिंदी 24 सितंबर 1949 को ही बन पाई ।हिंदी के उद्भव और विकास को हम देखें तो सर्वप्रथम वैदिक युग में संस्कृत भाषा का वर्चस्व रहा जो क्लिष्ट भाषा होने के कारण आमजन को कम समझ में आती थी ।छठवीं शताब्दी तक आते-आते पाली और प्राकृत भाषाओं में लोक भाषा के रूप में अपनी उपस्थिति जनमानस में दर्ज कराई इसके बाद अपभ्रंश भाषा का विकास हुआ हिंदी के बारे में कहा जाता है किया यह कैसी भाषा है जिसका जन्म तो अपने घर में हुआ लेकिन नामकरण पड़ोसी ने कर दिया। हिंदी शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा से हुई है ।संस्कृत भाषा की उत्तराधिकारी माने जाने वाली हिंदी आज प्रत्येक कार्यालय में अपने जन्म के लिए संघर्ष करती हुई दिखाई पड़ रही है। वही मुगल काल में फारसी साहित्य का अत्यधिक तेजी से विकास हुआ जो मुगलों की राजभाषा बन गई। फारसी भाषा पश्चिमी एशिया के सभ्य लोगों की भाषा के रूप में लोकप्रिय हो गई। धीरे धीरे उर्दू साहित्य का भी विकास हुआ आधुनिक उर्दू शायरी के जन्मदाता वली दकनी को माना जाता है जिन्होंने उर्दू साहित्य को एक अलग पहचान दिलाया। भारतेंदु युग में खड़ी बोली का विकास होने के साथ-साथ हिंदी भाषा को एक अलग पहचान मिली। वर्तमान युग में हम सभी का पुनीत कर्तव्य बनता है हिंदी भाषा के उन्नयन के लिए सकारात्मक लेखनी के माध्यम से कार्य करें।
मौलिक लेख
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
उत्तर प्रदेश