भूल जानें की ताक़त रखते हैं ...!!
हर लम्हा गुज़रता है मेरा ,
दर्द के आग़ोश में ।
जख़्म क्या देगा कोई ,
हूँ कहाँ मैं होश में ।।
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आँखों में समंदर की ,
लहरें समेटकर ।
बातों में ख़ूब सूरत सी,
नज़ाकत रखते हैं ।।
जख़्म दफ़न करना,
आदत है हमारी ।
पलभर में मान जानें की,
शराफ़त रखते हैं ।।
कभी रोए ना मुस्कुराए,
ये मेहरबानीं आपकी ।
हम तो अपनें आपसे ,
शिक़ायत रखते हैं ।।
टूटें या बिख़र जाएं ,
कुछ उसूल है हमारा।
नाज़ है ख़ुद पर,
ये खुद्दारी रखते हैं ।।
कभी मुस्कुरा लेते हैं,
ज़मानें के ख़ौफ़ से ।
बड़े ज़ालिम हैं लोग ,
फ़िक्र हमारी रखते हैं ।।
किताबों से नज़्म ,
रुख़्सत हैं आज़कल।
नग़में पिरोनें की ,
क़लमकारी रखते हैं ।।
बन्दग़ी इस उम्र की ,
क़ुबूल कर "विजय"।
जो खो गया भूल जाने की,
ताक़त रखते हैं ।।
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम. ए., बी.एड.,(हिन्दी)
स्वरचित मौलिक रचना
आजमगढ़,उत्तर प्रदेश
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