बहुतों को मयस्सर नहीं
सिर्फ थककर चूर
हो जाने पर ही नहीं
या फिर कुदरत की रवायत निभाने
के लिए ही नहीं
जब मन करे तब अच्छी नींद ले पाना,
ऐसा वरदान बच्चों को तो होता है
लेकिन इस अनमोल नियामत से
मरहूम ही रहता है ज्यादातर ज़माना।
सिर्फ भूख से मजबूर
हो जाने पर ही नहीं
या फिर कुदरत की रवायत निभाने
के लिए ही नहीं
जब मन करे तब अपना
पसंदीदा भोजन खा पाना,
आजकल के जमाने में तो
उस खाने को सही ढंग से पचाकर
बीमारियों के परहेज से पार पाना,
ऐसा वरदान किसी-किसी को होता है
वरना तो बहुतों को तो पचता नहीं
और बहुतों को उपलब्ध नहीं होता
मनपसंद खाना।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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