लघुकथा
*बाबू जी*
आज साक्षरता वाले बाबूजी(लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे)के निधन से पूरा का पूरा क्षेत्र शोक के सागर डूबा हुआ था।बाबूजी के घर के बाहर लोगों का हूजूम बढ़ता ही जा रहा था।
आखिर हो भी क्यों न,बाबू जी ने न केवल अपने गाँव बल्कि आस पास के दर्जनों गांवों में जहाँ स्कूल भवन नहीं थे,वहाँ सरकार ने मदद किया तो ठीक, अन्यथा अपने पैसों से स्कूल भवन बनवाने थे।लोगों को अपने बच्चों की साक्षरता के प्रति सतत संघर्ष किया।
अपनी निरक्षरता को बाबू जी अपना हथियार बना लिया था।सीधे साधे बाबूजी को बच्चा बच्चा प्यार करता था।
शुरूआत अपने ही गाँव से किया था,क्योंकि गाँव में उस समय विद्यालय था नहीं, और कोई अपने दरवाजे या बाग में अनुमति देने को तैयार न था।
जब बाबूजी ने होश संभाला तो अपने पिताजी जी किसी तरह अपने दरवाजे पर विद्यालय चलाने की अनुमति ले ली और अधिकारियों से मिलकर अध्यापक भी नियुक्त करा लिया।तब से आज तक बाबू जी बिना रूके बिना थके अपने उद्देश्यों पर चलते रहे।इसीलिए उन्होंने आजीवन शादी भी नहीं की।
जिले के शिक्षा विभाग के कई अधिकारी साक्षरता मिशन के इस पुरोधा को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे।
क्षेत्र के सांसद ने बाबूजी के नाम पर महाविद्यालय खुलवाने के आश्वासन साथ अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
बाबू जी अमर रहे के उदघोष से गगन मंडल गूँज उठा।
✍सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8125285921
©मौलिक, स्वरचित
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