आओ मिलकर सब दें हिन्दी भाषा को बढ़ावा
जिस तरह प्रेम करते हैं हम अपनी मां और मातृभूमि से,
मातृभाषा से भी हमारा प्रेम किसी से छिपा-छिपाया नहीं,
शर्मिंदगी महसूस करता हो जो इसे बोलने,पढ़ने, लिखने में
वो तो हमारी नजर में अपनी मां का भी जाया नहीं।
हमारे बोलने-समझने की शक्ति विकसित हुई है
इसी भाषा के श्रवण-मनन से
दूसरी किसी भाषा ने हमें यह सब सिखाया ही नहीं,
हमारी भावनाओं की सरिता बहती हिन्दी भाषा में है
और किसी भाषा में हमें ज्यादा कुछ कहना आया ही नहीं।
संसार में हर राष्ट्र करता है अपनी भाषा पर गर्व
लेकिन अभी तक अपने देश में ऐसा रिवाज आया नहीं,
विदेशी भाषा बोलने वालों को मिलता है सम्मान यहां
लेकिन हिन्दी भाषियों ने किन्हीं खास दिवसों के अलावा
ज्यादा आदर-सम्मान अपने देश में कभी पाया ही नहीं।
मातृभाषा उन्नति करती है जब किसी देश की
तो करता है उन्नति साथ-साथ वो देश भी,
अपनी मातृभाषा को संरक्षण व बढ़ावा दिए बिना
किसी भी देश ने विश्व-पटल पर नाम अपना चमकाया नहीं,
तो आओ हम सब मिलकर अपने आचार व्यवहार में दें
हिन्दी भाषा को जमकर बढ़ावा
क्योंकि यह कदम व्यापक स्तर पर किसी और ने
अब तक उठाया नहीं।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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