प्रेमचंद समाज के चितेरे
गोरी सुरत घनी भौहें
नाक नुकीले छोटी आँखें
गुच्छी हुई बड़ी- बड़ी मूछें
प्यारी मुस्कान चेहरे पे सोहे
विपरीत काल भी मुख न मोड़े
दीनों के दाता और मसीहा
दुखों को स्वयं देखा सहा
धनपत राय नाम कहाया
31 जुलाई 1880 में आया
वाराणसी के गांव लम्ही
अजायब लाल मां आनंदी
घर आए छोटे नबाब
माँ के पूरे हुए ख्वाब
पर वो रहने लगी बीमार
छोड़ वो गई स्वर्ग सिधार
जरूरत थी मिला न प्यार
टूट चुका दुखों का पहाड़
विमाता का सुन फटकार
बदले नहीं उनके व्यवहार
ये थे एक अदभुत बालक
जमायी वो अपनी धाक
कलम की जादुई तोप से
वैरियों को लगा आघात
पैनी नजरों से बचे नहीं
चाहे हो कोई जमात
कफन गोदान आदि
है सजीवता का प्रमाण
पीढी- पीढी याद करेगी
साहित्यकार थे नहीं है महान
दुनिया करती है गुणगान
स्व रचित
डॉ. इन्दु कुमारी
हिन्दी विभाग
मधेपुरा बिहार
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