" मेरा बेटा हैप्पी"
मेरा बेटा मिट्टी खाता ,
बहुत बड़ा दुर्गुण है यह।
हर समय शिकायत सुन -सुन कर,
थक गए कान अब रहनें दो।
है खेल रहा जैसे तैसे ,
जो जी में आये करनें दो।
यह नट-खट रोता रहता है,
सारा दिन बक-बक करता है।
खेल -खिलौनें नहीं चाहिए ,
पल्लू पकड़े रहता है ।
तुतला-तुतला कर बोल रहा,
प्रति क्षण उलझाए रखता है ।
यह "तीन" बरस का "बेटा" है,
हर समय ख़ुशामद करवाता।
रो -धो कर अपनीं सारी जिद
कैसे ही पूरी करवाता ।
ये बाल रूप ,अनजान रूप ,
ये क्या करते ,ये क्या जानें ।
इनके भी अपनें काम बहुत ,
जो हमसे मेल न खा पाते ।
यह क्या ??? ये ज़िद ले बैठे ,
यह वस्त्र नहीं जँचता मुझको ।
मैं नहीं पहनता ले जाओ ,
कोई अच्छा सा ले आओ ।
या यूं ही मैं स्कूल चला !!
उलझा -बिखरा मैला-मैला ।
दोनों हाथों में चॉक लिए ,
थैले को रेतों से भरकर ।
क्या हाल बनाया है अपना ,
अब लिपट रहे मुझसे आकर ।
हमनें जो इनको टोक दिया ,
ये जमा रहे हैं रौब बड़ा ।
मत भरो हाज़िरी बच्चों की ,
लाओ रोटी खोलो डिब्बा ।
मैं दंग हुई क्या करूँ हाय !!
है समय -चक्र पहला -पहला,
क्या हाल बनाएंगे "हजरत"
आते-आते अंतिम घण्टा ।।✍️✍️
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम. ए., बी.एड.(हिंदी)
स्वरचित मौलिक रचना
विधा - एक संस्मरण
आजमगढ़,उत्तर प्रदेश
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