Kahin jashn kahin hatasha by Anita Sharma

 कहीं जश्न,कहीं हताशा*

Kahin jashn kahin hatasha by Anita Sharma



समय परिवर्तित होता तो है,

पर...इतना ?

किसी देश में जश्न आजादी,

तो कहीं परतंत्रता छाई।

      कब मानवता जाग्रत होगी जग में,

      कब समन्वय होगा सब में?

      कब शान्ति का ध्वजारोहण होगा,

      सब सम्मान से जीवन जियेगे।

एक स्वतंत्रता प्यार भरी हो ,

विश्व कुटुम्ब की भावना हो।

समानता का अधिकार हो ,

कर्तव्यों की बात हो ।

       --अनिता शर्मा झाँसी

      --मौलिक रचना

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