दोस्ती का रंग
अपनी कमजोरियों पर शर्म,
बड़े-बुजुर्गों का लिहाज,
समाज में बदनामी के भय
और अपने करीबियों के बीच
मान-सम्मान बनाए रखने के
निरंतर दवाब के कारण
दुनिया के ज्यादातर रिश्तों में
अपने सही स्वरूप में प्रकट होने से
अक्सर कतराता है इंसान,
बस दोस्तों के बीच में ही
अपने सही रंग में आता है इंसान।
अलग जात का होकर भी
खाना-पीना-सोना होता है साथ,
अलग दीन-मजहब होते हुए भी
नहीं होती नफरत की कोई बात,
अमीरी-गरीबी और उम्र भी
लगा नहीं पाती इस पावन
रिश्ते पर कोई भी घात,
इंसानियत के इस अज़ीम रिश्ते को
जान देकर भी निभाता है इंसान,
बस दोस्तों के बीच में ही
अपने पूर्वाग्रहों से मुक्ति पाता है इंसान।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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