अभिलाषा जीवन की
जीने मरने की कसमें,
मात्र दिखावा नहीं जहां,
सच्चे प्रेमी बहीं दिखेंगे ,
चल अभिनंदन करते हैं। ।।
राधा का जितना प्रेम रहा,
नहीं किसी का पावन ,
अमर कथा कृष्ण प्रेम की,
सब करते हैं बंदन ,।।
लोलुपता में लुप्त हुई है,
सब का जीवन सारा ,
जहां न कोई लोलुपता हो,
वही डगर है प्यारा ।।
जीवन में तृष्णाएं इतनी,
इससे बचा न कोई ,
छल कपट से भरा हुआ,
यह छोटा सा जीवन। ।।
जीवन की अभिलाषा में,
चाहे जितनी परिभाषा दो,
जन्म मृत्यु से अलग नहीं,
जीवन का कोई दर्शन है। ।।
मानव मन तो उछल रहा,
मानो सारी दुनिया मेरी है,
कैसा है अविवेक तुम्हारा,
कल को देखा है किसने ?
अपनी चिंता मुझे नहीं है,
उसकी चिंता माधव की,
इतना है तुम पर विश्वास,
खंडित होगा कैसे आश। ।।
सब लीला नारायण की,
अपनी तो कुछ बची नहीं,
करना प्रभु का आराधन,
बचा वही मेरा साधन ।।
हे सुप्रीते रह जीवन में,
पावन मेरे जीवन कर,
मेरे गम को दूर करो,
जीवन के समतल में आ। ।।
जाने का तो गम है इतना,
प्रीति रीत निभाना कैसे ,
सोच विकल व्याकुल मन,
कुछ तो कर मेरे मन को ।।
मैं तेरा अनुमोदन करता,
हर इच्छा को आगे रखता,
यही सनातन परंपरा है ,
तेरे आगे मौन बना हूं। ।।
मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com