Zindagi jal Dhar Jaisi by hare Krishna Mishra

 जिंदगी जल धार जैसी

Zindagi jal Dhar Jaisi by hare Krishna Mishra



जिंदगी के हर मोड़ पर,

हम अधुरे ही रहे ,

चल रहा था दो चार कदम,

रुक क्यों गए हम ?


वह चली जल धार जैसी,

पावन सलिल आंचल लिए,

देखता तट पर अकेला ,

भाव विहव्ल हम रहे.  ।।


भमर के बीच फंस गया हूं ,

मजधार में बाधित हुआ हूं,

संक्षिप्त जीवन है हमारी ,

काश मुझको साथ देती   ।।


गर साथ मुझे तू दे न सको ,

दर्द मुझे अपना दे दो ,

जीवन में हम तो साथ रहे

मनुहार भरा जीवन दे दो   ।।


जाने अनजाने पथ पर ,

चलना बहुत कठिन है,

ले चल मुझे सहारा देकर,

मैं हूं तेरे पीछे। ।।


दूर-दूर तक दिशा न दिखती,

अवलंब   न  मेरा  कोई  ,

दूर हमें चलना है कितना,

ज्ञात नहीं है मुझको।    ।


आश भरा जीवन होता है,

नैराश्य कामना करता कौन  ?

साथ तुम्हारा पाने को ,

आतुर होगा मेरा मन।    ।।


किस पथ पर पाऊंगा तुझको ,

ज्ञात नहीं अब तक मुझको ,

बता सहारा किससे पाऊं ,

हार गया हूं जीवन में   ।।


मौलिक रचना

                    डॉ हरे कृष्ण मिश्र

                    बोकारो स्टील सिटी

                    झारखंड ।

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