जिंदगी जल धार जैसी
जिंदगी के हर मोड़ पर,
हम अधुरे ही रहे ,
चल रहा था दो चार कदम,
रुक क्यों गए हम ?
वह चली जल धार जैसी,
पावन सलिल आंचल लिए,
देखता तट पर अकेला ,
भाव विहव्ल हम रहे. ।।
भमर के बीच फंस गया हूं ,
मजधार में बाधित हुआ हूं,
संक्षिप्त जीवन है हमारी ,
काश मुझको साथ देती ।।
गर साथ मुझे तू दे न सको ,
दर्द मुझे अपना दे दो ,
जीवन में हम तो साथ रहे
मनुहार भरा जीवन दे दो ।।
जाने अनजाने पथ पर ,
चलना बहुत कठिन है,
ले चल मुझे सहारा देकर,
मैं हूं तेरे पीछे। ।।
दूर-दूर तक दिशा न दिखती,
अवलंब न मेरा कोई ,
दूर हमें चलना है कितना,
ज्ञात नहीं है मुझको। ।
आश भरा जीवन होता है,
नैराश्य कामना करता कौन ?
साथ तुम्हारा पाने को ,
आतुर होगा मेरा मन। ।।
किस पथ पर पाऊंगा तुझको ,
ज्ञात नहीं अब तक मुझको ,
बता सहारा किससे पाऊं ,
हार गया हूं जीवन में ।।
मौलिक रचना
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com