Yadon ka tarana by kalpana kumari

यादों का तराना

Parwah kaun karen by kalpana kumari


*** इस कदर सजाया है तेरी यादों को, कि मेरा आशियाना बन चुका है, इन्हीं आशियाने में, जीती और मरती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। तुम आओ या ना आओ, मुझे गम नहीं, तेरी यादों का तोहफा भी, कुछ कम नहीं, इन्ही यादों के कुछ पलों को, पन्नों पे उकेर देती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। तुमसे मिलना तो, संभव नहीं, खुली आंखों से, देख लेना मुमकिन भी नहीं, इसलिए बंद आँखों से तेरा सपना, सजाया करती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। तपन है, तेरी यादों में, तो शीतल भरे, चमन भी है, इसलिए तेरी यादों की, बगिया सजाये फिरती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। दर्द तो बहुत है, तेरी यादों में, पर खुशी भी, कम नही है, इसलिए तेरी यादों का, तराना गाये फिरती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। आइने को अपने, नजरों के पास रखती हूँ, जब चाहत हुई, तुम्हे देखने की, अपनी आँखों में, झाँक लिया करती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। अक्सर मेरी गलियों में, अंधेरा छाया रहता है, क्योंकि मेरे दिल में, तेरी यादों की रोशनी है, जब परवाना जल रहा हो तो, सम्मा बुझाये रखती हूँ, बेशक मैं नादान हूँ, तेरी यादों को लिए फिरती हूँ। * -कल्पना कुमारी

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