sukoon-aye talash by mamta kushvaha

सुकून -ऐ-तालाश

sukoon-aye talash by mamta kushvaha
सुकून -ऐ-तालाश सबको है
इस जहां में ,
हर एक इंसान परेशान है खुद में
बस कोई जाहिर कर देता है ,
तो कोई छुपा लेता है इसे
हेैेरत ना होना कभी खुद से तुम ,
ये दुनियादारी इतना आसान नहीं
सब उलझे हुए खुद के उलझनों में,
सुकून -ऐ-तालाश सबको है
इस जहां में ,
हर कोई खफा है इस जिन्दगानी में
जो मुस्कुरा कर बिता रहा हर पल ,
हर हाल में है वही खुश इस जहां में
वरना हर कोई तबहा हैं
इस जहां में ,
कहाँ किसी को मिलता सबकुछ
इस जहां में सभी को ,
सबकुछ पाने की ख़्वाहिश में
सब उलझे गए उलझनों में अनेक ,
सुकून -ऐ-तालाश सबको है
इस जहां में |

- ममता कुशवाहा
स्वरचित एवं मौलिक कविता
पिपरा असली, मुजफ्फरपुर, बिहार

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