mitti ka chulha by deepak sharma
يوليو 31, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
मिट्टी का चूल्हा
1
जब आया था
मेरे घर में
उज्ज्वला योजना के तहत
गैस सिलेंडर और चूल्हा
तब हमने भी देखा था
आधुनिक भारत के विकास का सपना
कि लकड़ी पर
मिट्टी का तेल गिराकर
मिट्टी का चूल्हा
अब नहीं जलाना पड़ेगा
मुँह और नाक से
कालिख और धुआं नहीं खाना पड़ेगा
शर्द में गोइठे पर भूसी छिड़कर
आंच नही बढ़ाना पड़ेगा
ताल वाले पोखरा से
पोतनी मिट्टी लाकर
हर बरस नया चूल्हा
नहीं बनाना पड़ेगा
मेरी अम्मा और दादी को
गोहरी, गोइठा, खोइया, संठा, रहट्ठा
और बगीचे से लकड़ियां
नहीं जुहाना-जुटाना पड़ेगा
जैसा कि जुहा-जुटाकर
और उसे सुखाकर
रखती थी वे
बड़े जतन से
घर की अटारी पर
जैसे रखी जाती है
कुण्डा और भूसा में अनाज,
मसहरी और पलंग के नीचे
विछाकर सुखी सब्जियां
जाड़े और बरसात में
मिट्टी का चूल्हा जलाने में
यही ईधन बड़ा काम आता था।
अब आये दिन दिख जाती है अखबार में
गैस सिलेण्डर के दाम बढ़ने की
मोटी-मोटी सुर्खियां
तब लगता है माँ को
घर में
मिट्टी का चूल्हा ही कारगर था
क्योंकि गैस के चूल्हे पर खाना बनाना
अपने हर दिन के
घरेलू खर्च से कटौती करना है।
2
जब पहली बार
आदिमानवों ने खोजी होगी आग
तब उन्होंने सबसे पहले बनाया होगा
मिट्टी का चूल्हा और मिट्टी का वर्तन
उनकी सभ्मता की यह नीव
आज गैस सिलेंडर के ज़माने में भी
कायम है
कारगर है
और ताकतवर भी।
-दीपक शर्मा
मो0 8931826996
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