megha kavita by anita sharma jhasi

 मेघा

megha kavita by anita sharma jhasi


मेघा छाये मन ललचाये ,

उमस गर्मी भी झुलसाये ।


तरसाते मेघा घिर-घिर कर ,

आसमान में छाते तो है ,

उमड़-घुमड़ बरसाये न ।


मन बेचैन बहुत होता है ,

श्वेत रजत टपके झलके ।


अब तो मेघा न तरसाओ ,

बूँदो की पाजेब झनकाओ,

बरस धरा की प्यास बुझाओ।


सूख रहे वृक्ष धरा के ,

सूख रहे पोखर और नदिया ।


पंछी तरस रहे बूँदो को ,

सीपी मोती देगी कैसे ,

स्वाती नक्षत्र की बूँदें दो ।

**

कृषकों को न निराश करो ,

बारिश को तरसे प्राणी ।


टिटहरी व्याकुल उड़कर बोले,

काले मेघा बरस पड़ो अब।


त्राहि-त्राहि जग करता है ,

अब मेघों मत तरसाओ ।


काले मेघा घिर आओ नभ पर,

बरसो अमृत जल बन कर।।

--अनिता शर्मा झाँसी--

--स्वरचित रचना-


Comments