khwab kavita by anita sharma jhasi

 ख्वाब

khwab kavita by anita sharma jhasi


गहरी नींद में खो गये थे,

बंद आँखो ने संजोए ख्वाब।


बहुत गहन रात्रि थी तब,

घर की चार दिवारों में बंद थी ।


कुछ घुटी-घुटी,कुछ टूटी थी,

हाँ नारी जग से टूटी हुई थी।


आज बहुत कुछ बदल गया,

आज परिन्दें सी पंख है उसके।


सुनहरी किरणें आखों में ,

नये-नये से ख्वाब बुने हैं।


आज आसमान पंख फैलाकर,

नया मुकाम हासिल किया है।


हाँ नारी ने इक ख्वाब गढ़ा है,

अपनी जिंदगी चौखट से पार करी है।


बहुत उलाहने सहती आई है ,

अब तो नव आकाश ख्वाब बना है।


दो दुनिया को वो सजाती ,

घर ऑफिस को साथ निभाती।


थी अबला पर अब सबला है,

शक्ति रूप ने ख़्वाब बुना है।


साकार होंगे नवस्वप्न उसके ,

आज परिन्दें सी पंख फैला उड़ेगी।


ख्वाब देखेगी नारी ,

उसे स्वतंत्रता भी देनी होगी।।

---अनिता शर्मा झाँसी---

-----स्वरचित रचना----  

Comments